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________________ ( ३८ ) ध्रुवक 2 कुवर पलारिणउ सब जगु जणिउ, गणिहि उछली खेह । रहिवर साजहि वाजे वाजहि, जाणे भादों के मेह ॥ जे अरिदल भंजइ परीवल गंजहि, सुहड चले अप्रमाणु । ते भणइ सभूते जाइ पहुते, सवल वीर समराण ॥१७५॥ चौपई प्रावतु देखि कुमर परदवणु, भरण सिंधु यौ वालो कोणु।। वालो रण कि पठावइ कोइ, इहिसउ भीडत लाज मो होइ ।।१७६॥ फुगि फुणि बाहरी उपह रार, किम करि बालेहि घाल घाउ । देखि मया चित उपनी ताहि, वाल कुवर वाहडि घर जाहि ॥१७७॥ __ प्रद्युम्न एवं सिंहस्थ में युद्ध निरिण वयण कोप्यो परदवणु, होण बोलु नै बोल्यो कवरणु । वाल उ कहत न लाभइ ठाउ, अब भानउ तेरउ भरिवाउ॥१७॥ (१७५) अणियउ (क) जालिज (ख) २. सब राजकुमर पलाणा (ग) ३. सह (क) सह (ग) ४. उडी (क) ५. जिम (क) जारण (ख) जारराज (ग) ६. अब (क) ७. अरियरए (म) ८. सघायह (क) ६. रण सामि (क) ले प्राण (ग) १०. भये (ब) ११. रथ-अते (ग) १२. ग्राइ (ख) (१७६) १. देखिउ (फ) देवा (ग) २. तिहि (ग) इहु (ख ग) ४. भरला (ख) बालकु (ग) कवरशु (व ग) क-प्रति-कहे मिघरय छत्री कवण ६. बालउ (क ख) वाला (ग) रिणिहि (क) रगिहि (ग) ८. एह सो (क) इह सिद्ध (ख) इसु स्यों (ग) ९. भिरत (क) तिडत (स) १०. न (क' मुहि (स) मै (ग) (१७७) १. वाला देखि पियो राउ (ग) :. बया (ख) ३. मनि (ग) क प्रति--तो देखत मोहि मनु विगसाइ, उठि कुमर वाहुद्धि धरि जाहि (क) (१७८) १. सुणे (ग) २. वचन (ग) ३. कहि () ४. किव (ग) लाज नहि छाउ (क) ५. उप (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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