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________________ ( २०६) (५६०) (लड़की वाले का) सारा परिवार मिलकर तथा विद्याधर व राजा लोग सब विवाह करने को चले । वे मर द्वारिका नगरी पहुँचे जहां मंडप बना हुआ था। (५६१) घर घर पर तोरण लगाये गये तथा सिंह द्वार पर स्वर्ण-कलश स्थापित किये गये । सब कुटुम्ब ने मिलकर उत्सव किया और भानुकुमार का इस प्रकार वियाह हो गया। (५६२) इसके बाद वे राज्य करने लगे तथा विविध प्रकार के भोग क्लिास करने लगे। प्रद्य म्न को सब राज्य के भोग प्राप्त होने लगे । उसके समान पृथ्वी पर दूसरा अन्य कोई राजा नहीं दिखता था। पंचम सर्ग विदेह क्षेत्र में मंधर मुनि को केवलज्ञान की उत्पत्ति (५६३) अब दूसरी कथा चलती है । पूर्व विदेह. में शत्रुकुमार (अच्युत स्वर्ग का देव) गया जहां पुंडरीक नगरी थी तथा जहां ज़मंधर मुनि निवास करते थे। (५६४) जो नियम, धर्म और संयम में प्रधान थे उनको केवलज्ञान उत्पन्न हुना । अच्युत स्वर्ग में जो देव रहता था वह मुनीश्वर की पूजा करने के लिये प्राया। अच्युत स्वर्ग के देव द्वारा अपने भवान्तर की बात पूछना (५६.५) उसने नमस्कार किया तथा अपने पूर्व भव की बात पूछी। हे गुणवान् मुनि ! पूर्व जन्म का जो मेरा सहोदर था वह किस स्थान पर पैदा हुश्रा ? (५६६) संशय हरने वाले उन (केवलज्ञानी ) ने सभा में कहा कि रवी पर पांचवां भरत क्षेत्र उत्तम स्थान है । उसमें सोरठ देश में द्वारिकारती नगरी है । भरत क्षेत्र में इसके समान दूसरी नगरी नहीं दिखती है । (५६) उस नगरी का स्वामी महिम्न श्रीकृष्ण है जो सपूर्ण नियम धर्म को पालन करने वाला है। उसकी भार्चा बड़ी गुणरती है और उसका नास रुक्मिणी है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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