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(५२) रत्नों से जड़ा हुआ छत्र सिर पर रखा गया तथा स्वर्णदंड वाला बर शिर पर हुरने लगा। सोने का मुकुट शिर पर ऐसा चमक रहा था मानो बाल-सूर्य ही किरणें फेंक रहा हो ?
(५८३) तम रुक्मिणी ने ईर्ष्या भाव से कहा कि सत्यभामा के केश लाओ । तीनों लोक भी यदि मुझे मना करे तो भी मैं उसके केश उतरवाऊँगी।
(५१) केश उतार कर उन्हें पांध से मलूगी तव प्रय म्न विवाह करने जावेगा। लेकिन इतने में ही सत्र परिवार के लोगों ने मिल करके दोनों में मेल करा दिया।
") सभी झम्बी जी के मन में स्सा हुआ कि प्रा म्नकुमार का त्रिवाइ हो रहा है । भाँवर देकर हश्रलेवा किया और इस प्रकार कुमार का पाणिग्रहण हुआ।
(५६) विवाह होने के पश्चात लोग घर चले गये तथा राज्य करने लगे और अनेक प्रकार के सुख भोगने लगे । सत्यभामा को व्याकुल देख करके सभी सौतें उसका परिहास करती थी। सत्यभामा द्वारा विवाह का प्रस्ताव लेकर पाटण के
राजा के पास दूत भेजना
(५८५) तब सत्यभामा ने सलाह करके ब्राह्मण को शीघ्रता से सन्देश लेकर भेजा । उस स्थान पर जहां रत्नसंचय नामक नगर था तथा रत्नचूल नामक राजा रहता था ।
(५८) ब्राहाण ने शीघ्रता से यहां जा कर विनय पूर्वक कहा कि सत्यभामा ने मुझे यहां भेजा है। रविकीर्ति से उन्हें अत्यधिक स्नेह है इसलिये उसी लड़की को भानुकुमार को दे देवें ।
भानुकुमार के विवाह का वर्णन
(५८६) सभी राजा और विद्याधर मिल करके कल कल शब्द करते हुये द्वारिका को चले । नगर में बहुत उत्सव किये गये जैसे ही भानुकुमार का विवाह होने लगा।