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________________ ( २०१७ ) ( ४७४ ) तत्र रुक्मिणी उसी समय कनकमाला के पैर लगकर बोली कि तुम्हारे घर से मैं कैसे ऋण होगी क्योंकि तुमने मुझे पुत्र की भिक्षा दी है । प्रद्यन का विवाह लग्न निश्चित होना .2 (५७५) उनके आगमन पर बहुत से उत्सव किये गये तथा प्रद्युम्नकुमार का विवाह निश्चित हो गया । ज्योतिपी को बुलाकर लग्न निश्चित किया तब मन में श्रीकृष्ण बड़े सन्तुष्ट हुये | (५७६ ) इरे बांसों का एक विशाल मंडप रचा गया तथा कितने ही प्रकार के तोरण द्वार खड़े किये गये । स्त्रे चौड़े वस्त्र बनाये गये तथा स्वर्ण कलश सिंह द्वारों पर रखे गये 1 विवाह में आने वाले विभिन्न देशों के राजाओं के नाम (५७७) सारे सामान की तैयारी करके श्रीकृष्ण ने सभी राजाओं को निमन्त्रित किया। जितने भी मांडलीक राजा थे सभी द्वारिका नगरी में आये। (५७) गदेश, बंग (बंगाल), कलिंग देश के तथा द्वीप समुद्र के जितने राजा थे वे सभी विवाह में शामिल हुये । लाड देश के चोल प्रदेश के, कान्यकुब्ज प्रदेश के गाजन (गजनी १) मालवा और काश्मीर देश के राजा महाराजा आये । ▸ (५७६) गुर्जर देश के नरेश अत्यधिक सुशोभित हुये तथा सांभर के वेलावल अच्छे थे। विपाडती कान्यकुब्ज के अच्छे थे। पृथ्वी के अन्य सभी राजा नमस्कार करते हुये देखे गये I (२०) शंखों के मधुर शब्द होने लगे तथा स्थान स्थान पर नगाड़े बजने लगे। भेरी और तुरही निरन्तर बजने लगी तथा माधुरी वीणा एवं ताल के शब्द होने लगे । (५८१) विद्वान् ब्राह्मण चारों वेदों का उच्चारण करने लगे तथा कामिनियां घर २ मंगलाचार गीत गाने लगी । नगरोत्सव के कारण कल कल शब्द होने लगे जब प्रद्युम्न विवाह करने के लिये चले ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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