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________________ ( २०६ ) रुक्मिणी को धन्य है जिसने ऐसा पुत्र धारण किया तथा जो नारायण के घर पर अवतरित हुआ। जिसके आगमन पर देव एवं मनुष्य जय जय कार कर रहे थे तथा मनोहर शब्द हो रहे थे । घर घर पर तोरण द्वार बँधे तथा 'छप्पनकोटि यादवों ने खूब उत्सव किया । (५६६) नगर में इतने अधिक उत्सव किये गये कि सारे जगत ने जान लिया । शंख बजने लगे तथा घरों में होने एवं (५६७) जब प्रद्युम्न घर के लोगों के पास गया तो नगर के प्रत्येक घर में बधात्रा गाये जाने लगे । गुडियां उछाली गर्यो तथा कामिनियों ने घर घर मंगलाचार गीत गाये | (५६८) ब्राह्मणों ने चतुर्वेदों का उच्चारण किया तथा श्रेष्ठ कामिनियों ने मंगलाचार किये । पुन्य (मंगल) कलशों को सजाकर सुन्दर नारियां अगवानी को चलीं । (५६६ ) नगर में बहुत उत्सव किया गया जब से प्रथम्न नगर में दिखाई दिया। सिंहासन पर बैठा कर सभी पुरजनों ने उसके तिलक किया । (५७०) दूध, दही एवं अक्षत माथे पर लगाया गया । मोती मासिक के थाल भर कर भारती उतारी गई तथा आशीर्वाद देकर सुन्दर स्त्रियां वहां से चलीं । यमसंवर का मेवकूट से द्वारिका आगमन ( ५७१ ) इतने में ही मेघकूद से विद्याधरों का राजा यम संवर पुत्र एवं कनकमाला सहित द्वारिका नगरी में आ पहुँचा । (५२) बहु विद्यावर पवन के वेग को तरह थाया जिसकी सेना से ( उड़ती हुई धूल के कारण ) कोई स्थान नहीं दिखाई दिया। वह अपने साथ रति नाम की पुत्री को लेकर द्वारिका पुरी में प्राया 1 यमसंवर एवं श्रीकृष्ण का प्रथम मिलन (५३) यमसंबर से श्रीकृष्ण ने भेंट की तब वे भक्ति पूर्वक सत्यभाव से बोले कि तुमने बालक प्रद्युम्न का पालन किया इसलिये तुम्हारे समान अन्य कौन स्वजन है
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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