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________________ ( २०५ ) प्रधुम्न के आगमन पर आनंदोत्सव का प्रारम्भ (५६०) प्रद्युम्नकुमार को जब देखा तो श्रीकृष्ण पुलकित हो उठे। सीने से लगाकर उसके मस्तक को चूम लिया जिस पर चोट के निशान हो रहे थे। प्रद्युम्न के शरीर पर जो निशान हो गये थे वे भी मन को अच्छे लगने लगे । उनका जन्म आज सफल हुथा है जर्याक प्रद्युम्न घर आया है । सभी कहने लगे कि श्राज परिजनों का देव मानों प्रसन्न हुआ है । श्रीकृष्ण मन में प्रफुल्लित हो रहे हैं जब से प्रद्युम्न उनके नयनों में समा रहा है । (५६१) भेरी और तुरही ग्ब बज रही है तथा आनन्द के शब्द हो रहे हैं । जैसी रुक्मिणी है वैसा ही आज उसको पुत्र मिला है । सकल परिजन एवं कुल का प्राभपण स्वरुप पुत्र उसको मिला है । बड़ा योद्धा एवं वीर है । सज्जनों के नेत्रों को आनन्द दायक है । सकल जन समूछ नगर के सम्मुख चलने लगे जिससे बहुत शोर हुआ तथा तुरही एवं भेरी बजने लगी जिससे ऐसा मालूम होने लगा कि मानों बादल गर्ज रहे हैं । (५३२) मोतियों का चौक पूरा गया तथा सिंहासन लाकर रखा गया जिस पर प्रहा म्न को बैठाया गया । इस घर को श्राज पुन्यवाला समझो। उस घर को भाग्यशाली समझो जहां प्रधम्न बैठा हुआ है । मोती और माणिक से भरे हुये थालों से आरती उतारी गई । युवराज बनाने के लिये तिलक किया गया जो सभी परिजनों को अच्छा लगा। जहां मोतियों का चौक पूरा हुआ था तथा लाया हुआ सिंहासन रखा हुआ था। (५६३) घर घर तोरण एवं मोतियों की बदनबार बँधी हुई थी। घर घर पर गुडियां उछाली जा रही थी तथा मंगलावार हो रहे थे । नवयुवतियां पुन्य (मंगल) कलश लेकर प्रद्य म्न के घर आयी। अगर एवं चंदन से सुशोभित कामिनियां गीत गा रही थी । घर घर मोतियों के बंदनवार एवं तोरण थे ।। (५६१) सकल सेना घर जाने के लिये उठी तथा छप्पनकोटि यादव घर घले । जिस द्वारिका को सजाया गया था उसमें क्षोभ हीन होकर चले। प्रद्युम्न का नगर प्रवेश (५६५) प्रद्युम्न नगर मध्य पहुँचा तो सूर्य की किरणें भी छिप गयीं । गृहों की छतों पर चढ़ कर सुन्दर स्त्रियों ने प्रद्युम्न को देखने की इच्छा की।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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