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________________ (२०४ ) (५५२) उस रुक्मिणी को धन्य है जिसने इसे धारण किया तथा उस सुसंगना (विगाधरी) को भी धन्य है जिसके यहां यह अवतरित हुआ तथा उस स्थान पर इसने वृद्धि प्राप्त की । आज के दिन को भी धन्य है जब मिलाप हुआ है। (५५३) धनुष और बाण को उन्होंने उसी स्थान पर डाल दिये । तथा घूमकर कुमार को गोदी में उठा लिया । जिसके घर पर ऐसा सुपुत्र हो । उसकी सब कोई प्रशंसा करता है। नारद द्वारा नगर प्रवेश का प्रस्ताव (५५४) तब नारद ने इस प्रकार कहा कि मन को भाने वाले ऐसे नगर की ओर चलना चाहिये । प्रधम्न के नगर प्रवेश के अवसर पर नगरी में खूब उत्सव करो। (५५५) श्रीकृष्ण के मन में तो त्रिपाद हो रहा था कि सभी सेना युद्ध में पड़ी हुई है । सभी यादव एवं कुटुम्बी रण में पड़े हुये है। तब क्या नगर प्रवेश मुझे शोभा देगा ? (५५६) नारद ने तम प्रा म्न से कहा कि तुम अपनी मोहिनी को वापिस उठा लो जिससे युद्ध में अति कुशल सभी योद्धा एवं सुभट उठ मोहिनी विद्या को उठा लेने से सेना का उठ खड़ा होना (५५७) तब प्रद्युम्न ने मोहिनी विद्या को छोड़ा जिसने जाकर सब अचेतना दूर कर दी । सभी सेना उठ खड़ी हुई तथा ऐसा आभास होने लगा मानों समुद्र ही उमड़ रहा हो । (५५८) धीर एवं श्रेष्ठ पाण्डव, दशों दिशाओं को वश में करने वाला . हलधर, कोदि यादव एवं सभी प्रचंड क्षत्रिय गण उठ खड़े हुए। (५५६) हाथी, घोड़े, रथवाले तथा पदाति आदि सभी उठ गये मानों विमान चल पड़े हों । इस प्रकार पृथ्वी पर जो सारे क्षत्रिय गण थे वे सभी खड़े हो गये । सधारू कवि कहता है कि ऐसा लगता था मानों सभी सो कर उठे हों।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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