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________________ (२०३ ) (५४३) रुक्मिणी ने कहा नारद ! सुनो मैं सत्यभाव से कहती हूँ कि अब तो मृत्यु का अवसर आ गया है । जब तक दोनों सुभद ललकार करके न भित्र जावे हे नारद ? शीघ्र ही जाकर रण को रोक दो। रण भूमि में नारद का आगमन (५४४) रुक्मिणी के बचनों को मन में धारण करके वह ऋषि विमान से उतरा । नारद वहीं पर जाकर पहुँचा जहां प्रद्युम्न और श्रीकृष्णा के बीच लड़ाई हो रही थी। (५४५) विष्णु और प्रद्युम्न का रथ खड़ा दिखाई दिया। प्रद्युम्न वार करना ही चाहता था कि नारद शीघ्र ही वहां पहुँचे और बाँह पकड़ कर कुमार को रोक दिया। नारद द्वारा प्रद्य म्न का परिचय देना (५४६) तब हँसकर नारद कहने लगे हे कारण ! मेरे वचन सुनिये । यह प्रद्युम्न तुम्हारा ही पुत्र है । इस सम्बन्ध में बहुत कुछ कहना है। (५४६) छठी रात्रि को यह चुरा लिया गया था तथा यह कालसंवर के घर बढ़ा है। इसने सिंहस्थ को जीता है। हे कृष्ण ! यह बडा पुण्यवान है। (५४८) इसको सोलह लाभों का संयोग हुआ है तथा कनकमाला से इसका बिगाड़ हो गया है । इसने कालसंबर को भी उसी स्थान पर जीत लिया तथा पन्द्रह वर्ष समाप्त होने के पश्चात तुमसे मिला है । (५४६) यह प्रद्य म्न बड़ा भारी वीर है तथा रण संग्राम में धैर्यवान एवं साहसी है। इसके पौरुप का कौन अधिक वर्णन कर सकता है ? ऐसा यह रुक्मिणी का पुत्र है। (५५०) इसी प्रकार प्रद्युम्न के पास जाकर मुनि ने समझा कर बात कही । यह तुम्हारे पिता हैं जिनने तुम्हारा खूब पौरुष श्राज देख लिया है। प्रद्युम्न का श्रीकृष्ण के पांच पड़ना (५५१) तब प्रद्य म्न उसी स्थान पर गया और श्रीकृष्ण के पैरों पर गिर गया । तब नारायण ने हृदय में खूब प्रसन्न होकर, प्रद्य म्न को उठाकर अपनी गोद में ले लिया।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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