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________________ । (५६८) उसके घर पर क्षत्रिय मदन (प्रय स्त) पैदा हुआ । उन्म पुण्यवान् को सभी कोई जानते है । सुन्दरता में उससे बढ़ कर कोई नहीं है और वह पृथ्वी पर राज्य करता है। देव का नारायण की सभा में पहुँचना (५ER.) केबली के बचन सुनकर देव वहां गया जहां सभा में नारायण बैठे थे । देवता ने मणि रत्न जदिन जो हार था उसे नारायण को देकर कहा। देव द्वारा अपने जन्म लेने की बात बतलाना (६००) फिर वह रविदेव कहने लगा कि हे महमद्दण : (महामहिम्न) मेरे वचन सुनिये । जिसको तुम अनुपम हार भेंट देनोगे उसी की कुद से मैं अवतार लूगा । श्रीकृष्ण द्वारा सत्यभामा को हार देने का निश्चय करना (६०१) तब यादवराय मन में आश्चर्य करने लगे तथा मन को भाने वाली मन में चिन्तना करने लगे। चन्द्रकान्त मणियों से चमकने वाला यह हार सत्यभामा को दूगा। प्रद्युम्न द्वारा रुक्मिणी को सूचित करना (६०२.) तत्र प्रद्युम्न के मन में यह विचार उत्पन्न हुआ और वह पवन वेग की तरह सक्मिणी के पास गया । माता से कहने लगा कि पेरी बात सुनिये मैं तुम्हें एक अनुपम बात बताता हूँ। (६८३) जो मेरा पूर्व भव में सहोदर था वह मुझसे बहुत स्नेह करता था । श्रथ वह स्वर्ग में देव हो गया है और बह रत्नजदित हार लाया है। (६०५) अब उस हार को जो पहिरेगा उसके घर पर वह पाकर पुत्र होगा । हे माता अब तू स्पट कह कि यह द्वार तुझे प्राप्त करा दूं ? (६०५) तब रुक्मिणी ने उससे कहा कि मेरे तो तुम अकेले ही सहर संतान के बराबर हो ! बहुत से पुत्रों से मुझे कोई काम नहीं है । तुम अकेले ही पृथ्वी का राज्य करो।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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