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________________ ( १९८) रण क्षेत्र में पड़ी डुई सेना की दशा (५०२) देखते देखते सभी यादव वीर गण गिर पड़े तथा साथ २ सभी सेनायें गिर पड़ी । जिनसे देवता लोग कांपते थे तथा जिनके चलने से पृथ्वी थर २ कांपती धी। जिन वीरों को आज तक कोई नहीं जीत सका था वे सभी क्षत्रिय आज हारे हुये पड़े बड़े आश्चर्य की बात है । गद यादव कुल को नाश करने के लिये मानों काल रूप होकर ही अवतरित हुआ है। (२०३) श्रीकृष्ण चारों ओर फिर फिर करके सेना को देखने लगे। चारों ओर क्षत्रियों के पड़े रहने के कारण कोई स्थान नहीं दिखायी देता था। केवल मोती और रत्नों की माला से जड़े हुये छत्र रण में पड़े हुये दिखलाई दिये। (५०४) अगणित हाथी, घोड़े और रथ पड़े हुवे थे । मदोन्मत्त हाबी स्थान स्थान पर पड़े हुये थे। जगह जगह पर निरन्तर खून की धारा यह रही थी और वेताल स्थान २ पर किलकारी मार रहे थे। (५५) गृद्धिणो और सियार पुकार रहे थे मानो यमराज हो उनको यह कह रहा था कि शीघ्र चलो रसोई पड़ी हुई है, अाकर ऐसा जीमलो . जिससे पूर्ण तृप्त हो जाओ । श्रीकृष्ण का क्रोधित होकर युद्ध करना (५:६) जब श्रीकृष्णा क्रोधित होकर रथ पर चढ़े तो ऐसा लगा मानो सुमेरु पर्वत कांपने लगा हो । जब वे संग्राम के लिये चले तो सकल महीतल कांपने लगा एवं शेषनाग भी हिल गया । युद्ध भूमि में रथ बढ़ाने पर शुभ शकुन होना " (५४७) जब अपने रथ को उनने युद्ध में आगे बढ़ाया तब उनका दाहिना नेत्र तथा दाहिना अंग फड़कने लगा ! तब श्रीकृष्ण ने सारथी से कहा कि हे सारथी सुनो अथ शुभ क्या करेगा ? (५०८) क्योंकि रण में सभी सेना जीत ली गयी है और रुक्मिणी को भी हरण कर लिया गया है । तो भी क्रोध नहीं आ रहा है तो इसका क्या कारण है इस प्रकार रण में धैर्य रखने वाले श्रीकृष्ण ने कहा ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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