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( ५०६ ) उस समय वह सारथी बोला यह आश्चर्य है कि यह कौन है ? तुम्हारी ललकार से यदि यह सुभट भाग जाये तो तुम्हारे हाथ रुक्मिणी सकती है ।
(४१०) उससे वीर शिरोमणि केशव बोले हे शत्रिय ! मेरे वचन सुनो। तुमने सभी मदोन्मत्त सेना का संहार कर दिया और अत्र ! मेरी स्त्री रुविमणी को भी ले जा रहे हो ।
श्रीकृष्ण द्वारा प्रद्युम्न
को अभयदान देने का प्रस्ताव
(५११) तुम कोई पुण्यवान क्षत्रिय हो। तुम्हारे ऊपर मेरा क्रोध उत्पन्न नहीं हो रहा है। मैं तुम्हें जीवन दान देता हूँ लेकिन मुझे रुक्मिणी वापस कर दो
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प्रद्य ुम्न द्वारा श्रीकृष्ण की वीरता का उपहास करना
(५१२) तब प्रद्युम्न हँस कर बोला कि रण में ऐसी बात कौन कहता है तुम्हारे देखते देखने मैंने रुक्मिणी को हरण किया और तुम्हारे देखते देखते ही सारी सेना गिर गयो ।
(५१३) जिस के द्वारा तुम रण में जीत लिये गये हो अब क्यों उसको अपना साथी बना रहे हो ? हे श्रीकृष्ण तुम्हें लज्जा भी नहीं आ रही है कि अब कैसे रुचिमणी मां.. रहे हो ।
(५१४) मैंने तो सुना था कि युद्ध में आगे रहने वाले हो लेकिन अब मैंने तुम्हारा सत्र पुरुषार्थ देख लिया है। तुम्हारे कहने से कुछ नहीं हो सकता । तुम्हारी सारी सेना पडी हुई है और तुमने हृदय से हार मान ली हैं ।
(५१५) फिर प्रयुम्न ने हंस कर कहा कि तुम पृथ्वी पर पड़े हुए अपने कुटुम्ब को देख कर भी सहन कर रहे हो। मैंने तुम्हारी आज मनुष्यता (पुरुषार्थ) जांचली है तुमको रुक्मिणि से कोई काम नहीं है अर्थात् तुम रुक्मिणि के योग्य नहीं हो ।
(५१६) तुमने परिग्रह को आशा छोड़ दी है तो रुक्मिणी को भी छोड़ दो। प्रद्युम्न कहता है कि अपना जीव बचाकर चले जाओ |