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(२) कोई वीर दोनों भुजाओं से भिड़ गये । कोई ललकार करके लड़ रहा था। कोई धनुष की टंकार कर रहा था । कोई तलवार के वार से शत्रुओं का संहार कर रहा था।
(४६३) युद्ध देखकर नारायण बोले, हे अर्जुन और भीम ! आज तुम्हारा अक्सर है। हे नकुल और सहदेव ! मैं तुमसे कहता हूँ कि आज अपना पौरुष दिखलाओ।
(४६४) तय श्रीकृष्ण दशौदिशाओं तथा वसुदेव को सुनाकर ललकार कर कहने लगे । हे बलिभद्र ! तुम्हारा अबसर है, आज अपना पौरुष दिखलाओ।
(४६५) भीमसेन क्रोधित होकर घोड़े पर चढ़ा तथा हाथ में गदा लेकर रण में भिड़ गया । वे हाथी के समान प्रहार करने लगे जिससे उनके सामने क्षत्रिय रागने लगे और कोई बचा नहीं ।
(४६) तब अर्जुन क्रोधित हुआ और धनुप चढाकर हाथ में लिया। वह चतुरंगिनी सेना के साथ ललकार कर भिड़ गया। कोई भी अर्जुन को रण से नहीं हटा सका।
१४६७) सहदेव ने हाथ में तलवार ला भार नकुल भाला लेकर प्रहार करने लगा । हलधर से कौन लड़ सकता था। वे अपने हलायुध को लेकर प्रहार करने लगे।
(४८८) सभी यादव एवं यौद्धा रणभूणि में साहस के साथ भिड़ गये । वसुदेव चारों ओर लड़ने लगे जिससे बहुत से सुभट लड़कर रण में गिर पड़े।
प्रद्य म्न द्वारा विद्या-बल से सेना को धराशायी करना
१४६६) तब प्रद्युम्न ने मन में बड़ा क्रोध किया और मायामयी युद्ध करने लगा। सारे सुभद रण में विद्या से मूर्छित होकर गिर पड़े जिसे विमानों में चढ़े हुये देयों ने देखा।
(५०) स्थान स्थान पर रथ और घुड़सवार गिर पड़े । रत्नों से परिवेष्ठित छत्र टूट गये । स्थान स्थान पर अगणित हाथी पड़े हुये थे जो लड़ाई में मदोन्मत्त होकर आये थे ।
(५०१) जब सभी सेना युद्ध करती हुई पड़ गयी तब श्रीकृष्ण खिन्न चित्त हो गये । वे हाहाकार करने लगे तथा सोचने लगे कि यह कौन बलवान वीर है।