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________________ । सेना के प्रस्थान के समय अपशकुन होना (४८) सेना के बायीं दिशा की ओर कौवा कांव कांच करने लगा तथा काले सर्प ने रास्ता काट दिया । दाहिनी ओर तथा दक्षिण दिशा की ओर शृगाल बोलने लगे । (४८५) वन में असंख्य जीव दिखाई दिये । ध्वजाये फकड़ने लगी एवं उन पर आकर पक्षी बैठने लगे। सारथी ने कहा कि शकुन बुरे हैं इसलिये आगे नहीं चलना चाहिये । (४६) तब उस अवसर पर केशव बोले कि हम कोई विवाह करने थोड़ ही जा रहे हैं जो शकुनों को देखें । वे सारथी को समझाने लगे कि जो कुछ विधाता ने लिखा है उसे कौन मेट सकता है। (४८७) नारायण शकुनों की परवाह किये बिना ही चलें। जब प्रद्य म्न ने सेना को दोनो मन में कुछ मिला नई माता रुक्मिगी को विमान में बैठा दिया और फिर मायामयी सेना खड़ी कर दी। विद्या वल से प्रध म्न द्वारा उतनी ही सेना तैयार करना (४) तम प्रद्युम्न ने मन में चिन्तन किया और युद्ध करने वाली विद्या का स्मरण किया। जितनी सेना सामने थी उतनी ही अपनी सेना तैयार कर दी। युद्ध वान (४८६) दोनों दल युद्ध के लिए तैयार हो गये । सुभटों ने धनुषों को सजाकर अपने हाथों में ले लिया। कितने ही योद्धाओं ने तलवारों को अपने हाथ में ले लिया । वे ऐसे लगने लगे मानों काल ने जीभ निकाल रखी हो। (४६०) हाथी वालों से हाथी वाले यौद्धा भिड़ गये तथा घुड़सवार सेना युद्ध करने लगी। पैदल सेना से पैदल सेना लड़ने लगी । तलबार के पार के साथ २ वे भी पड़ने एवं उठने लगे। . (४६१) कोई ललकार रहा है कोई लड़ रहा है । कोइ मारो मारो इस प्रकार चिल्ला रहा है । कोई धीर युद्ध स्थल में लड़ रहा है और कितने ही कायर सैनिक भाग रहे हैं। )
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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