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________________ (१८८ ) (४१८) उसी समय प्रष्ट्य म्न ने विचार किया और बहु रूपिणी विद्या को स्मरण किया । अपी को रासने श्रोगरा का टिंग और दूसरी मायामयी रुक्मिणी बना दी। सत्यभामा की स्त्रियों का रुक्मिणी के केश उतारने के लिये आना (४१) इतने में सत्यभामा की ओर से बहुत सी स्त्रियां मिल कर . स्था नाई को साथ लेकर चली और जहां मायामयी रुक्मिणी थी वहां वे आ पहुँची। (४२०) पांव पडकर उससे निवेदन किया कि उन्हें सत्यभामा ने उसके पास भेजी हैं । हे स्वामिनी तुम अपने मन में हीनतामत लामो तथा भंवरों के समान अपने काले केशों को उतारने दो। (४२१) वचनों को सुनकर सुदरी ने कहा कि तुम्हारा बोल सच्चा हो गया है । अन्ध कामदेव (प्रद्य म्न) का चरित्र मुनो कि नाई ने अपना ही सिर मूद लिया। प्रद्य म्न द्वारा उनके अंग काट लेना (४२२) उस नाई ने अपने हाथ की अंगुली को काट लिया और साथ की स्त्रियों को भी मूड लिया। उनके नाक कान खोड़े कर दिये फिर वे सब वापिस अपने घर की ओर चल दी । (४२३) वे स्त्रियां गाती हुई नगर के बीच में से निकली । किस पुरुष ने इन स्त्रियों को विकृत रूप कर दिया है. ? सबको यह बड़ा विचित्र अर्चमा हुआ और नगर के लोग इसी करने लगे। १४२४) उसी क्षण वे रणवास में गयीं और सत्यभामा के पास जाकर खड़ी हो गयीं । उनका विपरीत रूप देखकर वह बोली कि किसने तुम्हारा विकृत रूप कर दिया है ? (१२५) तम वे दुःखि। छोकर कहने लगी कि हम रुक्मिणी के घर गयी थीं । जब उन्होंने टटोल कर अपने नाक कान देखे तो वे माई की तरह रोने लगीं।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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