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(४०८) आपको कौनसी जन्मभूमि है तथा माता पिता के सम्बन्ध में मुझे प्रकाश डालिये। फिर उसने विनय के साथ पूछा कि आपने यह न किस कारण ले रखा है ?
(४०६ ) तब वह क्रोधित होकर बोला कि बाह्य गुरु के देखने से क्या होगा । गोत्र नाम तो उससे पूछा जाता है जिसका विवाह मंगल होने वाला होता है।
(४१०) हम परदेशी हैं देश देशान्तर में फिरते रहते हैं । भिक्षा मांग करके भोजन करते हैं। तू प्रसन्न होकर हमको क्या दे देगी और रूठ जाने पर हमारा क्या ले लेगी ।
(४११) जब वह खोडा क्रोधित हुआ तो उससे रुक्मिणी मन में उदास हो गयी। वह हाथ जोड़कर उसे मनाने लगी। मेरी भूल हो गयी थी आप दोष मत दीजिये |
(४१२) तत्र मधु ने उस समय कहा कि माता मुझे मत से क्यों भूल गयी हो। मुझे सच्चा प्रद्य ुम्न समझो तथा मैं पूछूं जिसका जवाब दो ।
(४१३ ) तब मन में प्रसन्न होकर उसने ( रुक्मिणी) जिस प्रकार अपना विवाद हुआ था तथा जिस प्रकार प्रद्युम्न हर लिया गया था सारा पीछे का कथान्तर कक्षा |
(४१४) उसे धूमकेतु हर ले गया था फिर उसे यमसंबर घर ले गया । मुझे यह सब बात नारद ने कही थी तथा कहा था कि आज तुम्हारा पुत्र घर थावेगा ।
(४१५) और जो मुनि ने वचन कहे थे उसके अनुसार सब चिह्न पूरे हो रहे हैं। लेकिन अब भी पुत्र नहीं आवे तो मेरा मन दुखित हो जावेगा ।
( ४१६) सत्यभामा के घर पर बहुत उत्सव हो रहा है क्योंकि आज भानुकुमार का विवाह है। मैं आज होड़ में हार गयी हूँ तथा कार्य की सिद्धि नहीं हुई है। इसी कारण मेरा मस्तक आज मूंडा जावेगा ।
(४१७) प्रद्युम्न माता के पास पूरी कथा सुनकर हाथ से पकड़ कर अपना माथा चुना। मन में पछतात्रा मत करो तथा मुझे हो तुम अपना पुत्र मिला हुआ जान लो |