SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (e) (३६०) जितने लोग जीमन के लिये आमंत्रित थे उन सबका भोजन उस ब्राह्मण को परोस दिया गया। नारायण के लिये जो लड्डु अलग रखे हुये थे वे भी उसने खा लिये । (३६१ ) तब रानी मन में बढ़ी चिन्ता करने लगी कि इसने तो सभी रमोई खा डाली है । यह ब्राह्मण तो अब भी तृप्त नहीं हुआ है और भूखा भखा कह कर चिल्ला रहा है | (३६२) उस वीर ने कहा कि यह तो बड़ी बुरी बात है कि तूने नगर के सब लोगों को निमंत्रित किया है। वे श्राकर क्या जीमेंगे तू एक ब्राह्मण को भी तृप्त नहीं कर सकी । (३६३) रानी के चित्त में विचार पैदा हुआ कि अब इसको कहां से क्या लाकर पलूंगी अब भूखे ब्राह्मण ने क्या किया कि अपने मुह में अगुली डाल कर उल्टी कर दी। (३६४) उस ब्राह्मण ने क्या कौतुक किया कि सब खाली बर्तनों को उल्टी से भर दिया । इस प्रकार वह रानी का मान भंग करके वहां से खड़ा हो गया । प्रद्युम्न का विकृत रुप धारण बनाकर रुक्मिणी के घर पहुँचना (३६५) मूंड मुंडा कर तथा कमंडलु हाथ में लेकर झुका हुआ ह कुबड़ा बन गया । वह वहां से लौटा। उसके बड़े बड़े दांत थे तथा कुरूप देह थी | वह अपनी माता के महल की ओर चला । (३६६) रुक्मिणी क्षण क्षरण में अपने महल पर चढती थी और क्षण क्षरण में वह चारों ओर देख रही थी कि मुझ से नारद ने यह बात कही थी कि आज तेरे घर पुत्र आवेगा । (३६७) मुनि ने जिन जिन बातों को कही थी वे सब चिन्ह पूरे हो रहे हैं । मनोहर श्राम्र के वृक्ष करते हुये देखे तथा उसका श्रांचल पीला दिखाई देने लगा | (३६८) सूखी बावड़ी नीर से भर गयी। दोनों स्तनों में दूध भर आया तब रुक्मिणी के मन में आश्चर्य हुआ इतने ही में एक ब्राह्मचारी वहां पहुँचा ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy