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(१८३) (३७०) प्रध म्न ने हंस कर कहा कि मैं परदेशी ब्राह्मण हूँ। हे देव । यदि तुम्हारी टाँग में पीड़ा हो जावेगी तो मैं कैसे जीयित बगा।
(३७१) फिर बसुदेव ने हंसकर उससे यह बात कही कि तुम्हारा दोष नहीं है तुम अपने मन में शंका मत करो । मेरी टाँग कैसे टूट जावेगी।
(३७२) तब उसने मेंढ़े को छोड़ दिया । सभा के देखते देखते उसने वसुदेव की दांग तोड़ दी। दांग तोड़ कर मेंढा वापिस आ गया और वसुदेव राजा भूमि पर गिर पड़े।
(३७३) जब वसुदेव भूमि पर गिर पड़े तो छप्पन कोटि यादय सिने लगे। फिर वह उस पूरी सभा को इंसा करके सत्यभामा के घर की ओर चल दिया।
प्रय म्न का ब्राह्मण का भेष धारण कर सत्यभामा के महल में जाना
(३७४) पीली धोवती तथा जनेउ पाहिन कर चन्दन के बारह तिलक लगाये । धारों वेदों का जोर से पाठ पढ़ता हुआ वह ब्राह्मण पटरानी के घर पर जा पहुंचा।
(३७५) वद सिंह द्वार पर जाकर खड़ा हो गया तो द्वारपाल ने अन्दर जा कर सूचना दी । सत्यभामा ने अपने अन्य ब्राह्मणों को (वेद पाठ आदि क्रियाओं से) रोक दिया ।
(३७६) सत्यभामा ने जब उसको पढ़ता हुआ सुना तो उसके हृदय में भाव उत्पन्न हुआ और उसको अन्दर बुला लिया। जब रानी का बुलावा पाया तो वह लकड़ी टेकता हुश्रा भीतर चला गया।
(३७७) हाथ में अक्षत एवं जल लेकर रानी को उसने आर्शीवाद दिया । रानी प्रसन्न होकर कहने लगी कि हे विप्र ! कृपा करो और जिस वस्तु पर तुम्हारा भार हो वही मांग लो।
(३७८) फिर सिर हिलाते हुये ब्राह्मण ने कहा कि तुम्हारी बोली सच्ची हो। मैं तुमसे एक ही सार बात कहता हूँ कि भूखे ब्राह्मण को भोजन दो।
(३) रानी ने पटायत से कहा कि यह भूखा खड़ा चिल्ला रहा है। इसे अपनी रसोई घर में ले जाओ और जो भी मांगे वही खिलादो।