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( १८२ ) (३६२) उसी क्षण दासी ने कहा कि यह सत्यभामा' की बावड़ी है यहां कोई पुरुष नहीं आ सकता है । हे मूर्ख ब्राण तुम यहां कैसे प्रा गये ?
(३६३) तब ब्राह्मण उसी समय क्रोधित हो गया ! उसने किसी का सिर मड लिया, किसी का नाक और किसी के कान काट लिये। फिर उसने बावड़ी में प्रवेश किया।
विद्या बल से बावड़ी का जल सोखना (३६४) उसने अपनी बुद्धि से कोई उपाय सोचा और जल सोषिणी विद्या को स्मरण क्रिया । यह ब्राह्मण कमंडलु को भर कर बाइर निकल पाया जिससे बावड़ी सूख कर रीती हो गई।
कमंडलु से जल को गिरा देना
(३६४) बावड़ी को सूखी देख कर स्त्रियों को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह ब्राह्मण बाजार के चौराहे पर चला गया । दासी ने दीव करके उसका हाथ पकड़ लिया जिससे कमंडलु फूट गया और उसका जल नदी के समान बहने लगा।
(३६६) पानी से बाजार डूब गया और व्यापारी लोग पानी २ चिल्लाने लगे। नगर के लोगों के लिए एक कौतुक करके वह यहां से . चल दिया।
प्रद्युम्न को मायामयी मेंढा बनाकर वसुदेव के महल में जाना
(३६७) फिर उस प्रद्युम्न ने मन में सोचा और उसने एक मायामयी मेंढा बना लिया । उसे वह वसुदेव के महल पर लेकर पहुँच।। तब काठीया (पहरेदार) ने जाकर सूचना दी।
(३६८) वसुदेव ने प्रसन्नता से उससे कहा कि उसे शीघ्र ही भीतर बुलायो । काठीया ने जाकर सन्देश कहा और वह मेंढा लेकर भीतर चला गया ।
(३६६) उसने मेंढे को बिना शंका के खड़ा कर दिया । राजा ने हंस कर अपनी टांग भागे कर दी ! तत्र प्रद्युम्न ने कहा कि इस प्रकार टांग फैलाने का क्या कारण है?