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( १७६ ) (३६६) तब ब्राह्मण को घोड़े पर चढाने के लिये भानुकुमार श्राया। लेकिन यह लटक गया और उसे चढा नहीं सका । जब दस बीस ने जोर लगाया तो बद्द भानुकुमार के गले पर पांव रख कर चढ गया ।
(३३७) जब ब्राह्मण घोड़े पर सरार हुआ तो वह घोड़ा आकाश में घूमने लगा। सभा के लोगों में देखकर लता शाकई कि कि या ते उसका चमत्कार ही है कि यह ऊपर उड़ गया ।
प्रद्युम्न का मायामयी दो घोड़े लेकर उद्यान पहुँचना
(३३८) फिर उसने अपना रूप बदल लिया और दो घोड़े पैदा कर लिये । राजा का जहां उद्यान था वहां यह घोडों को लेकर पहुंच गया।
(३३६) जब प्रद्युम्न उस उद्यान में पहुंचा तो वहां के रक्षक क्रोधित होकर उठे और कहा कि इस उद्यान में कोई नहीं चरा सकता । यदि घास काटोगे तो किरकिरी होगी।
(३४०) प्रद्युम्न ने अपने क्रोधित मन को बड़ी कठिनता से सम्हाला और रखवालों से ललकार करके कहा, भूखे घोड़ों को क्यों नहीं चरने देते हो। घास का कुछ मुझ से मोल ले लेना।
(३४१) तब उनकी बुद्धि फिर गई और उनको प्रद्य म्न ने काम मूबड़ी उतार कर दे दी। रखवाले हँसकर के बोले कि दोनों घोड़े अच्छी तरह घर लेवें।
(३४२) घोड़े फिर फिर के उद्यान में चरने लगे और नीचे की मिट्टी को खोद कर ऊपर करने लगे । तब रख वाले छाती कूटने लगे कि इन दोनों घोड़ों ने तो उद्यान को चौपट कर दिया।
(३४३) उन्होंने वह काम मूदड़ी प्रद्युम्न को लौटा दी जिसको उसने अपने हाथ में पहनली | तब यह धीर वहां पहुँच। जहां सत्यभामा की बाड़ी थी।
(३४४) प्रध म्न बाड़ी में पहुँचा तो उस स्थान पर बहुत से वृक्ष दिखलायी दिये । वे कल के लगे हुए थे यह कोई नहीं जानता था । फुलवारी विविध प्रकार से खिली हुई थी।