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( १७८ ) (३२६) घोड़े को देखकर भानुकुमार के मन में यह पाया कि चल कर ब्राह्मण से पूछना चाहिये । फिर उसने ब्राह्मण से पूछा कि यह घोड़ा लेकर कहां जाओगे?
(३२७) ब्राह्मण ने कहा कि घोड़ा अपना है। समंद जाति का ताजी बलख घोड़ा है । भानुकुमार का नाम सुन कर मै घोड़े को उनके यहां लाया हूँ।
१३२८) भानुकुमार के मन में विचार हुश्रा और उसने ब्राह्मण को बहुत प्रसन्न करना चाहा । हे विष सुनो ! मैं कहता हूँ कि तुम जो भी . इसका मोल मांगोगे वही मैं तुमको दे दूंगा।
(३२६) तब विष ने सत्यभाव से जो कुछ मांगा वह भानुकुमार के मन को अच्छा नहीं लगा । भानुकुमार बहुत दुखो हुअा कि इस विप्र ने मेरा मान भंग किया है।
(३३०) विप्र ने भानुकुमार को कहा कि मैंने तो मांग लिया है यदि तुम उतना नहीं दे सकते हो तो न देओ। मैंने तो तुमसे सत्य कह दिया । यदि इसे इसी समझते हो तो इसे दौड़ा कर के देख लो।
भानुकुमार का घोड़े पर चढना (३३१) ब्राह्मण के वचन सुन कर कुमार (भानु) मन में प्रसन्न हुया . और घोड़े पर चढ़ गया। लेकिन वह उस घोड़े को सम्हाल नहीं सका और उस घोड़े ने भानुकुमार को गिरा दिया । . (३३२) भानुकुमार गिर गया यह बड़ी विचित्र बात हुई इससे मभा में उपस्थित लोगों ने उसकी हंसी की। वे कहने लगे यह नारायण का पुत्र है और इसके बराबर कोई दूसरा सवार नहीं है।
(३३३) विप्र ने कहा कि तुम क्यों चढ़े ? इन तरुण से तो इम वृद्ध ही अच्छे हैं । मैं बहुत दूर से अाशा करके आया था किंतु हे भानुकुमार तुमने मुझे निराश कर दिया।
(३३४) हलधर ने वित्र से कहा डरो मन | तुम ही इस घोड़े पर क्यों नहीं चढते हो ? हे ब्राह्मण यदि तुम इसका ठहराव (बेचना) चाइते हो तो " अपना कुछ पुरुषार्थ दिखलाओ।
प्रद्युम्न का घोड़े पर सवार होना (३३५) कुमार ने दस बीस लोगों को ब्राह्मण को घोड़े पर चढाने के लिये भेजा तब ब्राहाण बहुत भारी हो गया और उनके सरकाने से भी नहीं सरका।