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________________ ( १७७) (३१५) जिसकी ध्वजा पर विद्याधर का चिन्ह है जहां ब्राह्मगा बैठे . हुये पुराण पढ़ रहे हैं तथा जहां बहुत कोलाहल हो रहा है वह सत्यभाम। का महल है। (३१६) जिस महल पर सोने की मालायें चमक रही है जिस पर बहुत सी बजायें फहरा रही है, जिसके चारों ओर मरकत मणियां बमक रही हैं वह तुम्हारी माता का महल है । (३२०) इन बचनों को सुनकर प्रद्य म्न जिसके कि चरित्र को कौन नहीं जानता बड़ा हर्षित हुआ । विमान से उतर करके वह खड़ा हो गया और . नगर में चल दिया। प्रद्य म्न का भानुकुमार को आते हुये देखना (३२१) चतुरंगिणी सेना से सुसज्जित उसने भानुकुमार को आने हुए देखा । तब प्रगुम्न ने विद्या से पूछा कि यह कोलाहल के साथ कौन था रहा है ? (३२.२) हे प्रद्य म्न ! सुनो मैं तुम्हें विचार करके कहती हूँ। यह नारायण का पुत्र भानुकुमार है। यह वहीं कुमार है जिसका विवाह है। इसी कारण नगर में बहुत उत्सव हो रहा है। प्रद्युम्न का मायामयी घोड़ा बनाकर बृद्ध ब्रामण का मेष धारण करना (३२३) वहां प्रद्य म्न ने मन में उपाय सोचा कि मैं इसको अच्छी तरह पराजित करुंगा । उसने एक बूढे विप्र का भेष बना लिया तथा मायामयी चंचल घोड़ा भी बना लिया । (३२४) वा घोड़ा बड़ा चंचल था तथा जोर से हिनहिना रहा था। जिसके चारों पांव उज्ज्वल एवं धुले हुये दिखते थे। जिसके चार चार अंगुल के कान थे। जो लगाम के इशारे को पहिचानता था । (३२५) जिस पर स्वर्ण की काठी रखी हुई थी ! वह ब्राह्मण उसकी लगाम पकड़ करके आगे चल रहा था। अकेले भानुकुमार ने उसको देखा कि ब्राह्मण वृद्ध है किन्त घोड़ा सुन्दर है ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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