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________________ (२:१६ ) (३१०) उदधि माला ने कहा अब मुझे पञ्च परमेष्टियों की शरण है। यदि मृत्यु न होगी तो मैं सन्यास ले लूंगी । तव नारद के मन में संदेद्द हुआ कि इमने बहुत बुरी बात कही है । ( ३११) नारद ने उसी समय कहा कि यह कामदेव अपनी कलाए दिखा रहा है। तब प्रद्युम्न ने बत्तीस लक्षण वाले एवं स्वर्ण के समान प्रतिभा वाले शरीर को धारण कर लिया और जिससे उसका शरीर कामदेव के समान हो गया । (३१२) उस सुंदरी उदधिमाला को समझा कर वे विमान से शीघ्र चलने लगे । विमान के चलने में देर नहीं लगी और वे द्वारिका के बाहर पहुँच गये । ( ३१३) नगर को देखकर प्रद्युम्न बोले कि जो मोतियों और रत्नों से चमक रही है, धन धान्य एवं स्वण से भरी हुई है। हे नारद ! वह कौनसी नगरी है ? नारद द्वारा द्वारिका नगरी का वर्णन ( ३१४ ) नारद ने कहा कि हे प्रधुम्न सुनो यह द्वारिकापुरी है जो सागर के मध्य में दृढ़ता से बसी हुई है यह तुम्हारी जन्मभूमि है। शुद्ध स्फटिक मणियों से जड़ी हुयी उज्ज्वल है। क्रूवे, बावड़ी तथा सुन्दर भवन, बहुत प्रकार के जिनेंद्र भगवान के मन्दिर, चारों ओर परकोट एवं दरवाजे से वेष्टित यह द्वारिका नगरी है । (३१५) यह सुनकर वीर प्रयम्न ने कहा कि हे नारद मेरे वचन सुनो। मुझे स्पष्ट को तथा कुछ भी मत छिपाओ । हे प्रद्युम्न ध्यान पूर्वक देखो जो जिसका महल है (वह मैं तुमको बतलाता हूँ । (३१६) नगर मध्य जो श्वेत वर्ण वाला एवं पांचों वर्णों की मणियों से जड़ा हुआ तथा सुन्दर महल है जिस पर गरुड़ की ध्वजा अत्यन्त सुशोभित है यह नारायण का महल है । (३१७) जिसके चारों ओर सिंह ध्वजा हिल रही है उसे बलभद्र का जानो । जिसकी ध्वजा में मैदे का चिन्ह है यह वसुदेव का महल है । मद्दल
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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