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________________ ( १८० ) उद्यान में लगे हुये विभिन्न घृक्ष एवं पुष्पों का वर्णन (३४५) जिसमें चमेली, जुही, पाटल, कचनार, मोलश्री की वेल थी। कणवीर का ज महक रहा था। केवड़ा और चंपा खूब खिले हुये थे। (३४६) महां कुद, अगर, मंदार सिन्दर एवं सरीष आदि के पुष्प महक रहे थे। मरुवा एवं केलि के सैकड़ों पौधे धे तथा उस बगीचे में , कितने ही नीचुओं के वृक्ष सुगंधि फैला रहे थे । (३४७) आम जंभीर एवं सदाफल के यहुन से पेड थे। तथा जहां बहुत से दाडिम के वृक्ष थे । केला, दाख, विजौरा, नारंगी, करणा एवं खीप के कितने ही वृक्ष लगे हुए थे। (३४८) पिंडखजूर, लोंग, छहारा, दाख, नारियल एवं पीपल आदि के असंख्य वृक्ष थे । वह वन कैथ एवं प्रांवलों के वृक्षों से युक्त था। प्रद्युम्न का दो मायामयी बन्दर रचना (३४६) इस प्रकार को बाड़ी देख कर उस वीर को बहुत आश्चर्य ' हुश्रा। उसने धैर्य और साहस पूर्वक विचार कर के दो बंदरों को उत्पन्न किया जिनको कोई भी न जान सका। (३५०) फिर उसने दोनों बंदरों को छोड दिया जिन्होंने सारी बाही को खा डाला। जो फूलबाडी अनेक प्रकार से फूली हुई थी उसे इन बंदरों ने नष्ट कर डाला। (३५१) फिर उन बंदरों को मुझा कर दूसरी ओर भेजा जिन्होंने वहां के सत्र वृक्ष तोड डाले । फूलबाड़ी का संहार करके सारी बाटिका को चौपट कर दिया। (३५२) जिस प्रकार इनुमान ने लंका की दशा की थी वैसे ही उन दोनों बंदरों ने याडी की हालत कर दी । तब माली ने जहां भानुकुमार बैठा हुधा था यहां जाकर पुकार की। (३५३) माली ने हाथ जोड़कर कहा कि हे स्वामी मुझे दोष मत देना । वो बन्दर वहां आकर बैठे हैं जिन्होंने सारी बाड़ी को खा डाला है।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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