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(२६.२ ) जब नारद दुःखित मन हुये तो मदन ने हंस करके उपाय किया और माफि और मणियों से सज्जित एक विमान क्षण भर में
तैयार कर दिया
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(२.१.३) प्रद्यु
न ने जिस विद्या बल से विमान को रचा था उस विमान ने अपनी कान्ति से सूर्य और चन्द्रमा की कान्ति को भी फीका कर दिया । व ध्वजा, वंटा एवं झालर संयुक्त था । प्रद्युम्न चढ़ा 1
इस पर नारायण का पुत्र
(२६४) चढने के पूर्व कालसंबर को बहुत समझा करके अति भक्ति भाव से उसके चरणों का स्पर्श किया। कुमार ने तब क्षमा याचना की और कंचनमाला के घर गया ।
(२६५) कुमार प्रयुम्न एवं नारद मुनि विमान पर चढ़ कर आकाश में उड़े | बहुत से गिरि एवं पर्वत को लांघ करके जिन मन्दिरों की वन्दना की ।
(२६६) फिर वे वन मध्य पहुँचे तो उस स्थान पर उदधि माला दिखाई दी। प्रयम्न को मार्ग में बरात मिली जो भानुकुमार के विवाह के लिये द्वारिका जा रही थी ।
(२६७) नारद ने पद्य म्न से बात कही कि यह कुमारी पहिले तुम्हीं को हो गयी थी। तुमको जब धूमकेतु दर ले गया तो उसे अब भानुकुमार को दे दी गई है ।
(२६) नारद ने कहा कि इसमें मुझे दोष कोई नहीं मालूम होता है । यदि तुम्हारे में शक्ति है तो इसको जबरन ले लो। ऋषिराज के वचनों को मन में धारण करके उसने अपना भील का भेष कर लिया ।
प्रद्युम्न द्वारा भील का रूप धारण करना
(२६६ ) हाथ में धनुष तथा विपाक्क बाश ले लिया और उतर कर उनके साथ सिल गया। पवन के वेग के समान आगे जाकर उनका मार्ग रोक कर खड़ा हो गया ।
(३००) मैं नारायण की ओर से कर लेने वाला हूँ इसलिये मेरी अधिक लाग है वह मुझे दो। जो मेरे योग्य अच्छी चीज है वही म दे दो जिससे मैं सब लोगों को जाने दू ।
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