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________________ ( १७३ ) (२८३) ऐसा करके प्रद्युम्न कहने लगा कि मैंने कालसं घर की सम्पूर्ण सेना को नष्ट कर दिया ! जब प्रथा म्ल इस प्रकार नाह रहा कालोप वहां आ पहुंचे। नारद का आगमन एवं युद्ध की समाप्ति (२८४) प्रद्युम्न से उन्होंने कहा कि बस रहने दो । पिता और पुत्र में कैसी लहाई ? जिस राजा ने तुम्हारी प्रतिपालना की थी उससे तुम किस प्रकार लड़ रहे हो? (१८५) नारद ने सारी बात समझा करके कही तथा दोनों दलों को लड़ाई शान्त कर दी। कालसंवर तुम्हारे लिये यह उचित नहीं है क्योंकि यह प्रद्युम्न तो श्रीकृष्ण का पुत्र है। (२८६) नारद के वचन सुनकर मन में विचार उत्पन्न हुआ । राजा का दिल भर आया तथा उसका सिर चूम लिया । राजा को बहुत पछतावा हुना कि अपनी चतुरंगिनी सेना का संहार हो गया । (२८) तन्त्र प्रद्य म्न ने क्रोध छोड दिया । मोहिनी विद्या को इटा कर सब की मूर्छा को उतार दिया । नागपाश को जब वापिस छुड़ा लिया तो चतुरंगिनी सेना फिर से उठ खड़ी हुई । (च) सेना के उठ खड़े होने से राजा प्रसन्न हुआ तथा प्रद्युम्न के प्रति बहुत कृतज्ञता प्रकट करने लगा । नारद ऋपि ने उसी समय कहा कि तुम्हारी घर प्रतीक्षा हो रही है । (REE) यदि इमारे वचनों को मन में धारण करो तो शीघ्र ही घर की ओर मुंह करलो । चायु के वेग के समान तुम द्वारिका चलो । श्राज तुम्हारा विवाद है। (२६०) प्रशन्न ने नारद से कहा कि तुमने सच्ची बात कही है। मुझे जो केवली भगवान ने कही थी सो मिल गयी है। तब हंसकर के प्रद्युम्न बोला कि हमको कौन परणावेगा ? नारद एवं प्रद्य म्न द्वारा विद्या के बल विमान रचना (२६१) नारद ने क्षण भर में विमान रच दिया किन्तु प्रद्युम्न ने उसे इंसी में तोड डाला । मुनि ने विमान को फिर जोड़ दिया किन्तु प्रद्युम्न ने उसे फिर तोड़ दिया।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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