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(२७५) राम रावण में जो लड़ाई बढ़ी थी वह सूपनखा को लेकर ही बढी । सीता को हरण करने के कारण ही लंका नष्ट हुई तथा रावण का संपूर्ण परिवार नष्ट हुआ।
(२७६) कौरव और पांडवों में महाभारत हुआ और कुरुक्षेत्र में महायुद्ध ठहरा । उसमें अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गयी । उसका कारण दोनों दल द्रौपदी को बतलाते थे ।
(२७७) फिर कालसंवर ने उससे कहा कि कनकमाला यह तेरा अपराध नहीं है । पूर्व कृत कर्मों को कोई नहीं मेट सकता । यही कारण है कि इन विद्याओं को प्रद्य म्न ले गया ।
(२८) अशुभ कर्म को कोई नहीं भेद सकत! । सज्जन भी देरी हो जाते हैं । हे कनकमाला ! तुम्हारा दोष नहीं है । अपने भाग्य में यही लिखा था।
गाथा
पुरुष के उल्टे दिन आने पर गुण जल जाते हैं, प्रेमी चलायमान हो जाते हैं तथा सज्जन विठुड जाते हैं । व्यवसाय में सिद्धि नहीं होती है। .
(२७६) कालसंवर के प्रवाह में कौन बच सकता है ? फिर वह राजा वापिस मुडा और उसने अपनी चतुरंगिणी सेना को एकत्रित किया तथा दुबारा जाकर फिर लड़ने लगा।
यमसंवर एवं प्रद्युम्न के मध्य पुनः युद्ध (२८०) राजा ने मन में बहुत क्रोध किया तथा धनुष चढाकर हाथ में लिया। जब उसने धनुष को टंकार की तो ऐसा लगा कि मानों पर्वत हिलने लग गये हों।
(२८१) जब दोनों वीर रण में आकर भिंड तो विमानों में चढ़े हुये . देवता गण भी देखने लगे । निरन्तर बाए बरसने लगे तथा ऐसा लगने लगा कि असमय में बादल खूब गर्ज रहे हों ।
(२८२) सब प्रद्युम्न बड़ा कोधित हुआ तथा उसने नागपाश को फेंका। परा दल नागपाश द्वारा दृढ़ता से बांध लिया गया और राजा अकेला खड़ा रह गया।