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________________ हिन्दी-अर्थ प्रथम सर्ग स्तुति खण्ड (१) शारदा के बिना कविता करने की बुद्धि नहीं हो सकती उसके बिना कोई स्वर और अक्षर को भी नहीं जान सकता । सधारु कवि कहता है कि जो सरस्वती को प्रणाम करता है उसी की बुद्धि निर्मल होती है। (२) सब कोई 'शारदा शारदा' करते हैं किन्तु उसका कोई पार नहीं पाता । जिनेंद्र के मुख से जो वाणी निकली है उसे ही शारदा जानकर मैं प्रणाम करता हूँ। (३) सरोवर में पाठ पंखुडि बाल कमल पर जिसका निवास स्थान है, जिसका निकास काश्मीर से हुआ है। इस जिसकी सवारी है और लेखनी जिसके हाथ में है उस सरस्वती देवी को कवि सधारु प्रणाम करता है। (४) जो श्वेत वस्त्र धारण करने वाली है तथा पद्मासिनी है और वीणावादिनी है ऐसी महाबुद्धिमती सरस्वती मुझे आगम ज्ञान दे । मैं उस द्वितीय सरस्वती को पुनः प्रणाम करता हूँ। (५) हाथ में दण्ड रखने वाली पयायती देवी, ज्यालामुखी और चकेश्वरी देवी तथा अम्बावती और रोहिणी देवी इन जिन शासन देवियों | को कवि सधार प्रणाम करता है। (६) जो जिनशासन के विघ्नों का हरण करने वाला है, जो हाथ में लकड़ी लिये खड़ा रहता है और जो संसारी जनों के पापों को दूर करता है ऐसे क्षेत्रपाल को पुनः पुनः सादर नमस्कार करता हूँ। (७) चौबीसों तीर्थकर दुःखों को हरने वाले हैं और चौबीसों ही जरा मरण से मुक्त हैं। ऐसे चौबीस जिनेवरों को भाव सहित नमस्कार करता हूँ सथा जिनके प्रसाद से ही कविता करता हूँ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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