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यहु चरितु पुन भंडारु, जो वरु पढ्इ सु नर महसार ।
तहि परदम तुही फलदेइ, संपति पुत्र श्रवरु जसु होइ ||७००||
es gray न जाणों केम्वु, अक्षर मातह गुरणउ न भेउ । पंडित जगह नमू कर जोडि, होगा अधिक जण लावह खोडि ।। ७०१ ॥
॥ इति परदमण चरित समाप्तः ॥
शुभं भवतु | मांगल्यं ददातु । श्री वीतरागायनमः । संवत् १६०५ वर्षे आसोज वदि ३ मंगलवारे श्री मूलसंघे लिखापितं श्राचार्य श्रीललितकीर्ति सा० चांदा सरवण सा० नाथू सा० दाशा योग्यत । श्रेयोस्तु ||