SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १४२ ) (८) ऋषभ अर्जित और संभवनाथ ये प्रथम तीन तीर्थंकर हुए I चौधे अभिनन्दन कहलाये । सुमतिनाथ प्रद्मप्रभ और सुपार्श्वनाथ तथा आठवें चन्द्रप्रभ उत्पन्न हुए । (१) नवें सुविधिनाथ और दशवें शीतलनाथ हुए | ग्यारहवें ॐ यांसनाथ की जय होवे । यामुपूज्य विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ और सोलहवें शान्तिनाथ हुए । (१०) सतरहवें कुंथुनाथ, अठ रहवें अरहनाथ, उनीस मल्लिनाथ, बीसवें मुनिसुव्रतनाथ इक्कीसवें नमिनाथ, बाईसवें नेमिनाथ, तेईसवें पार्श्वनाथ और चौबीसवें महावीर ये मुझे आशीर्वाद दें। (११) सरस कथा से बहुत रस उपजता है। अतः प्रद्युम्न का चरित्र सुनो । संवत् १४०० और उस पर ग्यारह अधिक होने पर भादव मास की पंचमी, स्वाति नक्षत्र तथा शनिवार के दिन यह रचना की गयी । (१२) जो गुरणों की खान हैं, जिनका शरीर श्याम वर्ण का है, जो शिवादेवी के पुत्र हैं, जो चौतीस अतिशय सहित हैं, जो कामदेव के तीक्ष्ण बाणों का मान मर्दन करने वाले हैं, जो हरिवंश के चिन्तामणि हैं, जो तीन लोक के स्वामी हैं, जो भय को नाश करने वाले हैं, जो पांचवें ज्ञान केवलज्ञान के प्रकाश से सिद्धान्त का निरुपण करने वाले हैं, ऐसे पवित्र नेमीश्वर भगवान को भली प्रकार नमस्कार करता हूँ । (१३) पहिले पञ्च परमेष्ठियों को नमस्कार कर फिर जिनेन्द्रदेव के चरणों की शरण जाकर तथा निर्बंन्ध गुरु को भाव पूर्वक नमस्कार कर उनके प्रसाद से कविता करता हूँ । द्वारिका नगरी का वर्णन (१४) चारों ओर लवणसमुद्र से घिरा हुआ सुदर्शन पर्वत वाला जम्मूद्वीप है। इसके दक्षिण दिशा में मरतक्षेत्र है जिसके मध्य में सोरठ सौराष्ट्र देश बसा हुआ है। (१५) उस देश में जो गांव बसे हुये हैं वे नगरों के सदृश लगते हैं । जो नगर हैं वे देव विमानों के सम्मान सुन्दर हैं । उन नगरों में प्रत्येक मंदिर बल तथा ऊंचे हैं जिन पर सुन्दर स्वर्ण- फलश झलकते हैं।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy