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________________ ( १३८ ) अंधकार का परिचय ... .. . मइसामीकउ कीयउ वखाणा, तुम पजुन पायउ निरवाण । अगरवाल की मेरी जात, पुर अगरोए मुहि उत्तपाति ॥६६४।। सुघणु जणणी गुणवइ उर बरिउ, सामहराज घरह अवतरिउ । एरछ नगर बसंते जानि, सुरिंगउ चरित मइ रचिउ पुराणु ॥६६५॥ सावयलोय वसहि पुर माहि, दह लक्षणा ते धर्म कराइ । दस रिस मानइ दुतिया भेज, भावहि चितहं जिणेसरु देउ ॥६६६॥ {६६४) १. प्रसाद (ग) २. प्रागरोबइ (ग) अगरोवद (ख) निम्न छन्द मषिक है विहा गार नगर वह देश, भषिय जीव संयोहि असेस । पुरिण तिनि प्रा6 फम्म पण कियो, पुरण पजुग नियवासह गयो । हउ मतिहीण विवुद्धि प्रयागु, मइस्थामोकन कियउ वस्त्राणु । उछाह मन में किया चरित्त , पढमाइ उद्धाई दे सो वित्तु १७००॥ पडिय जरग नम कर जोखि, हम मतिहीण म लाबद्ध खोहि । अगरवाल की मेरी जाति, नगरोचे मेरी उतपति ॥७०१॥ पुस चरितु मइ मुणे पुराण, उपनउ भाउ मह कियो वखार । . जइ पुहमि इक चित कियो, साई समावि लिपउ ॥७०२॥ घउपइ बंध मइ कियउ विचितु, भयिय लोक पक्षहु दे चित्त । हूं मतिहीं न आणउ केउ, ग्रखर मात न जाणउ भैउ ५७०३॥ . (६६५) १. सुधभु (ग) २. गहुँ उरि घरयो (ग) ३. साह मइराण (क) समहराइ करिया अवतरपो (ग) ४. एलचि (क) एयरन () मेरस (ग) ५. करिउ वखारण (क) में कोया पखाशु (ग) (६६६) १. सवल लोग (ख) सब ही लोक (ग) २. नायहल ते राई कराइ (ग) ३. वरिसण माहि दुतिया भेख (क) दसरा नाराहि द्वमा भेउ (ख) वर्शन माहि नही तिन्ह भेउ (ग) ४. जपउ विचित (क) ध्यावहि चिसि (त्र) पाहि इक मनि जिनपर देव (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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