SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३७ । प्रद्युम्न को फेस शान एवं निर्माण की प्राप्ति घाइ कम्मु को किउ विणासु, उपरणउ केवलु षण निरजासु । । दीठउ लोयरण लोयपमाण, झायउ चित्तव उच्छउ झाणु ।।६६०॥ तखण पायउ चंद सुरिंदु विजाहर हलहर धरणिंदु । | नारायण बहु सजण लोगु, सुरयरणु अछरायणु बहु भोगु ॥६६॥ युरणइ सुरेस्वर बाणी पवर, जय जय मोहतिमिरहरसूर । जय कंद्रप हउ मति नासु, जाई तोडिवि घालिउ भवपासु ।।६६२॥ | इय थुतिवि सुर वइ फुरिण भरणइ, धरणवइ एकु चित भउ सुणइ । 1 मुड केवली रिद्ध विचित्त, रचहि खणतरि वण्ण विचित्त ॥६६३।। __ -- -- (६९०) १. जो चितवं सोघउ था प्रामु (ग) (५९१) १. विद्याधर प्राया धरि पानन्यु (ग) २. नर सुर को तह हर । संभोग (क) ३. मण (म) ___ (६६२) १. सुणइ नारि सर (क) सुरणह सुशाणो प्रवणे प्रपार (म) । २. करह मा तिमिर (क) गइ मा मोहणिजिरा हर हार (ग) ३. कउ कियो विरणास (क) काम मनि मासु (ग) ४. जा सुजाण तोडा भष पास (क) मज भी विद्या लोया पासु (ग) (५६३) १. एम भणिवि सुर सामी भरणा, पणषाद एकह निता सुरणा (क) इव सुणि मुरबइ सो फुगि भरणा, ध्याय मबइ छु इचिति सुणड (ग) २. पवित, (ग) ३. पाणरति (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy