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________________ ( १३५ नारायण के वयरण सुणेइ, तं पडि ऊतरु कंद्रपु देइ । का कउ राजुभोग घरवारु, सुपिनंतरु जइसउ संसारु ॥६७६।। का कउ धन पौरिषु बलु घणउ, का कउ वापु कुटंव कहि तरणउ । , घडिक मा जाइ विहडाइ, पाव क्षिपति को सकइ रहाइ ।।६८०॥ रुक्मिणि का विलाप करना नारायण वारि विलखाइ, फुरिण रूपिणि सपत्ती आइ । करण कलाप करइ विललाइ, केम पूत मन धरम रहाइ ॥६८१॥ एक पूत तू मोको भय उ, धूमकेत तवही हरी लयउ । - कनकमाल घर विरधि करत, वाले सुखह न देखिउ पूत ॥६८२॥ फुणि मोहि घर प्रायो अानंदु, कुल उद्योत जिम पुन्यो चंदु । राज भोगत ए किए असेस, अव ए भूमिरु रहोगे केस ॥६८३॥ (६७६) १. तखिणि (ग) २. कंत्रप उतर देइ (ग) ३. किसुका राज वेस धरवार (ग) (६८०) १. घटी एक धाले (ग) २. उपति खपति के रहर पराइ (ग) गप्रति में प्रथम द्वितीय चरण नहीं है। (६८१) १. पाहुडि (क ख) २. थलत प्रगमि कउ सिज वुझाइ (ग) (६८२) १. स्तनपान मेरो मवि करिउ, नवि उछ गि फवहि मह धरिउ (क) (६८३) १. उदघो जाणु' (ग) २. लहिगे (ख ग) क प्रति में निम्न प्रकार हैरुपरिण मइ तय का मन किया, इव किस देखि सहारउ हियउ । राजा एक कोला प्रसेस, अव ए तुमिर सह केस ॥६८८|| क प्रति में निम्न छन्द अधिक है-- पुरिग इय रूपरिण लागी कहण, जिन तव लेहि पूत परचमण । इसी कहि महतू जर परिउ, अब किस देखि सहारउ हियउ ।
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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