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________________ मुनि प्रागमु सो मेटइ कम्वरणु, जरदकुमार हाथ भान सुभानु अरु सामिकमारु, आठ महादे संजमु भारु ॥६७३!! सुणि बात लज गणहर पास, निहचे द्वारिका होइ विरणासु । दीपायनु तपचरगह गयउ, जरदकुमार वनवासा लयउ ॥६७४।। प्रद्युम्न द्वारा जिन दीक्षा लेना दसदिसा खहु जादम भए, करि संजमु जिणवर पह गए। दीष्या लेइ कुमर परदवणु, चिताबत्यु भयउ नारायणु ।।६७५॥ । प्रद्य म्न द्वारा वैराग्य लेने के कारण ___श्रीकृष्ण का दुखित होना विलख वदनु भयो नारायणु, हा मुहि पूत पूत प्रदवनु । कवरण वुद्धि उपनी तो आजु, लेहि द्वारिका भुजइ राजु ॥६७६।। । राजधुरंधर जेठउ पूत, तोहि विद्याबल आहि वहुत । तोहि पवरिषु जाणइ सुरभवण, जिण तपुलेइ पूत परदवणु॥६७७।। कालसंवर जाणइ तो हियउ, हउ रण महतइ विलखो कीयउ।। तइ रूपिरिंग हरी मुहुतणी, फुरिग तइ सुहड पचारे घरणे ॥६७८।। (६७३) १. जरा (ग) २. होड़ (ग) ३. सम्बु (क ख ग) (६७४) १. जरासिंधु (फ) जराकुमार वनवासो भया (ग) (६७५) १. चितवन्त (क) चितापस्य (ग) २. थयउ (क) ३. महमहण (क) महमहण (ग) (६७६) १. बोलइ तिस कवरण (क) बोलइ नारायण (ख) बोला। ममहरण (ग) (६७७) १. मत (क)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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