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देवि याहिण करिउ वहूत, फुणि माधव प्रारंभिउ थुति । अजय कंदर्प खयंकर देव, तइ सुर असुर कराए सेव ॥६६६।। जइ कम्म? दुटु खिउकरण, जय महु जनम जनम जिनुसरणु। तुम पसाइ हउ दूतरु तिरउ, भव संसारि न वाहुडि परउ ।।६६७।। करि स्तुति मन महि भाइ, फुणि नर कोठि बइठउ जाइ । तउ जिणवाणी मुह नीसरइ, सुर नर सयल जीउ मनि धरइ।।६६८॥ धर्माधर्म सुरिगउ दुठ वयण, पागम ताउ सूणि उ परदवणु । गरणहर कहु पूछइ षण सिधि, छपनकोटि जादम की रिधि ॥६६६।। नारायण मरण कहि पासु, सो मो कहु आपहु निरजासु । द्वारिका नयरी निश्चल होइ, सो आगमु कहि अाफहु मोहि ॥६७०।।
गणधर द्वारा द्वारिका नगरी का भविष्य बतलाना
| पूछि वात तउ हलहल रहइ. मन को सासउ गणहर कहइ ।
वारह वरिस द्वारिका रहहु, फुरिण ते छपनकोटि संघरहु ।। ६५७१॥ द्वीपायन ते उठ इव जागि, द्वारिका नयरी लागई पागि । मद ते छपनकोटि संघरइ, नारायण हलहल उवरइ ।।६७२ ॥
(६६६) १. ध कहोजे कथा बहुस, (ग) २. प्रारभिउ धुत्त (फ) प्रारंभिड षोउ (ख) पुरिए केसउ भाइरवड धुत्त (ग) ३. मूलपाठ भाभिउ पुत्र ४. करहि तिसु सेव (ग)
(६६८) १. करिषद थुति (क) करिव युति (ख) करिवि पति (ग) २. मनिमति (फ ख ग) वूसरा और तीसरा चरण ग प्रति में नहीं है।
(६७०) यह छन्द क प्रति में नहीं है । (६७२) १. बलिभद्र (ख) २. छपनकोडि समुच संघरहि (ग)