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( १३२ )
चौपई
फिरि चेताले वंदे मयरण, तिन्हि ज्योति दिपइ जिम्ब रयण । प्रविधि पूजउ न्हाणु कराइ, बाहुनि म ए हारिका जाइ ॥६६०॥ इथंतरि अबरु कथंतरु भयउ, कोरो पांडव भारहु भयउ । तिहि करखेत महाहउ भयउ, तिहि नेमिस्बर संजमु लयउ॥६६१॥ बाहुरि मयण द्वारिका जाइ, भोग विलास चरित विलसाइ । छहरस परि सीझइ ज्योनार, अमृत भोजन करै आहार ॥६६२॥ तहा सतखणा धोल हर अवास, निय निय सरसे भोग विलास । अगर चंदन वह परिमल वास, सरस कुसम रस सदा सुवास ॥६६३॥
नेमिनाथ को केवल ज्ञान होना कालुगत गयउ, फुणिर नेमि जिन केवल भयउ । समवसरण तब आइ सुरिणद, वरणवासी अवर सुररिंदु ॥६६४।। छपनकोटि जादम मन रले, नारायण स्यो हलहल चले । समउसरण परमेसरु जहा, हलहल कान्ह पहुते तहा ॥६६॥
एसी रीति
(६६०) १. वरण करइ (ख) बंडे जाणु (ग) २. तिन्ह की जोति देखा जिरणभाव (ग) ३. पूजा (क ख ग)
१६६१) १. तिम्ह (क) तिन्हि (ख ग) २. किया (ग) (६६२) १. छह रुति विलसद भोग कराइ (ग) २. सरप्त (ग) .
(६६३) १. धवन (क ल ग) २. निय पिय सरसहि (ख) नोरस परिस (ग) ३. केसर (ग) सहै (ग) ४. सरस कुसमरस सवा सुवास (क) मूलपाठ-लंबोल कुसम सर दोस
(६६४) १. प्रासी (क ख) इसी (ग) २. भुवरणवासी प्रायो परिणिदु (ग) । (३६५) १. सभी जरवम मिले (ग)