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संख भेरि बहु पडह अनंत, महुवरि वेण तूर बाजत । दे भावरि हथलेवउ भयउ, पाणिगहनु चौहुजरण कियउ ॥६५६॥ घर घर नयरी भयउ उछाहु, दुहु कुवर कउ भयउ विवाहु । सूरिजन जण ते मन मा रलइ, एकइ सतिभामा परजलाइ ॥६५७।। रूपचन्द को आइस भयउ, समदिनारायण सो घर गयउ । कुंडलपुर सो राज कराइ, बाहुरि कथा द्वारिका जाइ ।। एथंतरि मनु धर्मह रलो, जिगु वंदुण कैलासहि चलिउ ।।६५८॥
छठा मार्ग प्रय म्न द्वारा जिन चैत्यालयों की वन्दना करना वस्तुबंध--- ताम चिंतइ कुवर परदवणु।
भउ संसार समुदु परिजयनु, धर्म दिढ चित दिजइ । कैलासहि सिर जिरणवर भुवरण, सुद्ध भाइ पूज्जइ किज्जइ । प्रतीत अनागत वरत जे दीठे जाइ जिरिंगद । जे निपाए जिरणवर भुवरा, धनु धनु भरहं नरिंद ॥६५६॥
. (५६) १. मधुरी वीण ताल वाजंत (क) २. कोया (ग) ३. पाणग्रहा करि बुइ परसोया (म)
(६५७) १. का हवा (ग) २. करि कतिग प्राग बुइ घले (ग)
(६५८) इस पक्ष में ६ चरण हैं। १. इत्वंतरि (क) एथंतरि (ख) येवंतरि (ग) २. सो मन महि रले (ग)
(६५६) १. वुत्तर तरह (क) समुपरि (ग) समुदपरि (ख) २. जैनधर्म (कल ग) ३. सिखर (ख) कविलासह सो सिखरि (ग) ४. वर्शते धंदे (क) ५. जेरिंग कराए जिस भवरण से सब वंदे प्रानंर (ख) ग प्रति में अन्तिम २ पति निम्न प्रकार है
बलिउ ताह जह कम छिजइ फिरि फिरि वेलद जिण भुवण । वंदा भावन भाइले जिम, प्राच्या महि रहहि सह महोहुसरवाद ।।