SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १२७ ) गीत कवित जे आदम तणे, ते कंद्रप गाए सब सुणे । प्रवर गीत सब चीतइधरणी, जादम राय की सलहण करइ ॥६३८।। जादम तणउ नाउ जब लयउ, रूपचन्द मन विसमउ भयउ । बहुत गीत को जाणहु सार, कहाँ हुते आए वैकार ॥६३६।। ____ रूपचन्द को अपना परिचय बतलाना द्वारिका नयरी कहिए ठाउ, भुजइ नरायणु जादमुराउ । पाटमहादे जहा रुक्मिणी, राय सहोवरि जो तुह तणी ॥६४०॥ तुह्मि सलहण बइ करई बहूत, तिणि राणी पठए इत । तुम्हि उतरु तिहि कहउ जाइ, तिहि सहेट मि पाए राई ॥६४१॥ वाले वोलति करहु पम्वाणु, सतु वाचीय परि होइ पवाण । (भाख पालि मन धरहु सनेहु, दोउ पुत्री हमि कहु देहु ॥६४२॥ (६३८) १. प्रापणा (क) २. पाहि (क) सो चिति नकि (ग) ३, जादम राह सालाहति फरह (ग) १. मूलप्रतिमें-पाग सणे पाठ है तथा चतुर्य परण महीं है ? (६३९) १. भाउ (ख) सुराज (ग) २. मन बिलखड (क) मनि विसमज । (ख ग) मूलप्रति में 'नवि भयज' पाठ है ३. गाए बहुवार (क) कीया तह सार (ग) ४. कहा ते पाए ए बेकार (ग) (६४०) १. तह (ग) वसहि (ख) भूघा ताह नारायण राउ (ग) मूलप्रति में-'नई' पाठ है । (६४१) १. गुणवंत (क) तोहि सराहण काहि बहूत (ग) २. पठए ये बत (को पठये हम व्रत (ख) तिनि नाराहरिण था पट्ठया दूतु (ग) (६४२) १. प्रमाण (क) परवाणु (ख) परवमशु (ग) २. पवारण (क) पर. हाण () सत्य पयरग ते होहि परवाणु (ग) ३. भागिवंत (क) भामि जामिनि (ग) ---.. ... ---- - -.- "- -- -- -- -
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy