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मइ जाण्योउ मुहि भायउ प्रहइ, एसी बात निचू भउ कहई । मानद होइ, एसी बात कहइ न कोइ ||६३३
विषयवासि
निसुरिण वयण परदवनु रिसाइ, हीरणु वयरण तह बोलइ माइ । रूपचंदुरा जिलहु पचारि, पारण रूप छलि पराउ नारि ॥ ६३ प्रद्युम्न का कुंडलपुर को प्रस्थान
केंद्रप बुद्धि करी तंखीणी, सुमिरी विद्या बहुरूपिणी ।
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संबु कुवरु परदमनु भयउ, पवण वेगु कुंडलपुर गयउ ॥६३ दोनों का डोम का वेष धारण कर लेना
दीठउ नयरु दुवारे गयज, डोम रूप दोउ जण भयउ ।
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मयण अलावरिण करण पठए, सामकुमार मंजीरा लए ॥ ६३
फिरे बोर चोहठें महारि, उभे भये जाइ सीहवारि ।
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वहु परिवार सिउ दीठउ राउ, तर केंद्रपु करह ब्रह्माउ ॥ ६३
(६३३) १. नीच ( क ) नील स्पों ( ग ) २. विष्कु सिंघास रिण ( Facea सिरिश (ख) किम चम सुरिंग बोलइ सोइ ( ग )
( ६३४) १. पवनवेग ( ग )
(६३५) १. संयु कुवर परचम भयो (क) संघ कुषारि कुबरु हुए भए मूल प्रति में 'स्वामी' पाठ है ।
(६३६) १- द्वारि आइए (ग) २. करि पाठए ( क, ख ) कहि यो ३. संबु कुरि ( ग )
(६३७) सीह कुवारि ( ग ) सीह कुवारि ( क ) २. परिवर ( m ) ofenzena' ( « )