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________________ ( १२५ ) निसुरिण वयरण खरण चाल्यो दूत, द्वारिका नयरि श्राइ पहूत | * तुम को वचन कहै समझाई, सो जरण कहिउ सरस्वती जाई || ६२८ || १ नारायण स्यो प्रायस कहउ, हम तुम माह कमरण सुख रहिउ । 3 के अवगुण तुम्हारे लेउ, तुम कहु छोडि डोम कहु देउ || ६२६ ॥ セ निसुरिण बात विलखाणी वयण, श्रासू पातु कीए है नयण । 3 ४ मानभंग इहि मेरउ कीयउ, बुरो कियउ मुह दुख्यो हीयउ ॥ ६३० || विलख वदनि दीठि रूपिणी, पूछ बात जननी आपणी । कवरण बोल तू विसमउ धरइ, सो मो वयरण वेगि उचरइ ||६३१॥ मइ छइ पूत मंत्र प्राठयो, कुंडलपुर जग पाठयो । 3 दुष्ट वचन ते कहे बहुत, साले खरे पूए मो पूत || ६३२ || ( ६२८ ) १. तिकउ ( क ) उहकउ ( ख ) मोस्यउ ( ग ) २. ग्राह कहा off के अ ( क ) सोति कहि दकिमिरगी सिंह भाइ (ख) सो तिन्ह कहे कमरिण श्राइ ( ग ) (६२६) १. एसो ( क ) अइसन ( ख ) प्राइसा यउ ( ग ) २. हम तुम्ह आई सुबह सा भयउ ( ग ) २. फिलेक ( ग ) किले ( स ) ४. यारे ( ग ) ५. म ( क ख ग ) (६२० ) १. सो बिलली वयण (ग) २. करहि वुह (क) करइ बुद्द (खग ) ३. ( क ) इति ( ख, ग ) ४. बुरा बोलु मोरयल बोलीया ( ग ) (६३२) १. इसि तमंत प्रारूपो (क) मथि पूल वय चाथपत्र (ख) (ग) २. छउ जरण पाठवो ( क, ख ) दूत पाइयो ( ग ) ३. साले खरज ही यह मोहि पूतु ( क ) साले खरे मुहि होय बहुत ( ख ) सालहि हिये खरे से पूल ( ग ) मइथा पुत्र सुइड टू
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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