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निसुरिण वयरण खरण चाल्यो दूत, द्वारिका नयरि श्राइ पहूत |
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तुम को वचन कहै समझाई, सो जरण कहिउ सरस्वती जाई || ६२८ ||
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नारायण स्यो प्रायस कहउ, हम तुम माह कमरण सुख रहिउ ।
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के अवगुण तुम्हारे लेउ, तुम कहु छोडि डोम कहु देउ || ६२६ ॥
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निसुरिण बात विलखाणी वयण, श्रासू पातु कीए है नयण ।
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मानभंग इहि मेरउ कीयउ, बुरो कियउ मुह दुख्यो हीयउ ॥ ६३० ||
विलख वदनि दीठि रूपिणी, पूछ बात जननी आपणी । कवरण बोल तू विसमउ धरइ, सो मो वयरण वेगि उचरइ ||६३१॥
मइ छइ पूत मंत्र प्राठयो, कुंडलपुर जग पाठयो ।
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दुष्ट वचन ते कहे बहुत, साले खरे पूए मो पूत || ६३२ ||
( ६२८ ) १. तिकउ ( क ) उहकउ ( ख ) मोस्यउ ( ग ) २. ग्राह कहा off के अ ( क ) सोति कहि दकिमिरगी सिंह भाइ (ख) सो तिन्ह कहे कमरिण श्राइ ( ग )
(६२६) १. एसो ( क ) अइसन ( ख ) प्राइसा यउ ( ग ) २. हम तुम्ह आई सुबह सा भयउ ( ग ) २. फिलेक ( ग ) किले ( स ) ४. यारे ( ग ) ५. म ( क ख ग )
(६२० ) १. सो बिलली वयण (ग) २. करहि वुह (क) करइ बुद्द (खग ) ३. ( क ) इति ( ख, ग ) ४. बुरा बोलु मोरयल बोलीया ( ग )
(६३२) १. इसि
तमंत प्रारूपो (क) मथि पूल वय चाथपत्र (ख) (ग) २. छउ जरण पाठवो ( क, ख ) दूत पाइयो ( ग ) ३. साले खरज ही यह मोहि पूतु ( क ) साले खरे मुहि होय बहुत ( ख ) सालहि हिये खरे से पूल ( ग )
मइथा पुत्र सुइड टू