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________________ ( १२८) रूपचन्द का उन दोनों को पकड़ने का आदेश देना वस्तुबंध--- निसुगिण कोपिउ खरउ तहिराउ। जाणी वैसुदर घीउ ढलीउ, धुणि सीसु सरवंग कंपिउ ! पाणभ बोलत गयउ, एहु वोलते कवणु जंपिउ ।। लै बाहिर ए निगहहु, सूली रोपहु जाइ । जई जादौ नदि सवल, तोहि छुरावह प्राइ ॥६४३॥ चौपई गीम्ब गहे तक करहि पुकार, डोम डोम हुइ रहे अपार । हाथ अलावरिण सिंगा लए, हाट चोहटे सब परिरहे ।।६४४॥ तखण कुवर भइ पुकार, रूपचंद रा जारणी सार। हय गय रह सेती पलणाइ, छरण इक माह पहुंतंउ आइ ॥६४५॥ रूपचंद रा पहुतो आइ, सामकुम्वारु परदमणु जहा । एक ताक्क सव एकहि साथ, सागालाए अलावणी हाथ ॥६४६।। - - - - - - १६४३) १. सदहि मनिराउ (ग) २. प्रति रोस कीए (ग) ३. प्राण जीय (क) पारण जीव (ख) पुरिग बोल्यो भ्रिम गयो (ग) ४. लेई बाहरि निगघउ (क) बहि लेहो बहु निग्रहल (ग) ५. यहि पडि वन महि धरिउ जैसे पाइपलाइ (क) (६४४) १. प्रोव (क) गावत गाहे करहि पुकार (ख) गीत कवित तिनि काढ वारि (ग) २. अरु गलि जाइ (ग) ३. भरि गए (फ ख) भये वृद्धि चौहटे फिराइ (ग) ( ६४५ ) १. पुरवि (क) पुरवरि (ख) पुत्र गुथे इंकारि (ग) २. राय जगाई सार (क) कह दीनी सार (ग) ३. रथ पाइक (ग) (६४६) माई पतन तिहा (क) २. संब कुमर परवमण () म कुवरू परदोश (ग) ३. एक तक नासरि (n) ४. गले मलावरण बोरगा हाथि ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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