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( १२३ ) तउ कुकडा देइ मुकलाइ, उपराऊपरु भिरे ते आइ । कुवर भान तणउ गो मोडो, संवकुवर जिणे वें कोडि ॥६१८॥ वहुत खेल सो पाछ कीयउ, तवइ मंत ता ओरई कियउ । दूत हकारि पठायो तहा, बहुरि विजाहर निमसइ तहा ॥६१६॥
गयो दूत नही लाइ वार, विजाहरनी जणाइ सार । भरणइ दूतु मनि चित्या लेहु, पुत्री एकु मानहि देहु ।।६२०।।
सुभानुकुमार का विवाह विजाहर मन भयउ उछाहु, दोनि कुवरि भयो तह व्याहु । द्वारिका नयरी कलयलु भयो, व्याह सुभान कुवर को भयउ ।।६२१॥ कुवर सुभान विवाहै जाम, तव रूपीणि मन चिंतइ जाम । : द्भुत वुलाई मंत्र परव्यो, रूपुकुवर पास पाठयो ॥६२२।।
. (६१८) १. सभा मारायण मुखु चाल्या मोडि (ग) २. जीता वोह कोकि (ग) । (६१९) १. संवकुवर जोति धनु लोया (ख ग) युवक सुभानुहि माये हारि, तर विलखी सतभामा नारि (ग)
(६२०) १. विजाहर राइ (ग) २. भरणों विपु जिन अनवितु लेख (ग) लोह (न ग) मूलप्रति में 'भरगद दूत मन अनुचित लेख, पुत्री एकु भानह लेहि
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(६२१) १. विद्याहरु (क) विजार (ख) २. तिन (क) दीनी (ज ग) उति लोगु सयल प्राइज (ग) (२२) १. तब रुपरिण मनि उट्टयो चाउ, हउ प्रपणा याहउ करिभाउ (ग)
कियो (क) सठयो ( ३..पासहि पाठयउ (क) पास पाल्यो (ख) गरिहि दृतु पाठयो, मा रूपचंदु वोनयत (ग)