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चौपई जब जंबइ पूत अवतरिउ, संवकुम्बारु नाउ तसु धरथउ । वहु गुणवंत रूप कउ निलउ, ससिहर कान्ति जोति पागलउ ६१२॥
सत्यभामा के पुत्र उत्पत्ति एतह पढम सग्गि जो देउ, सुर नर करइ तास की सेव । सो तह हुँ तउ आउ खउ चयउ, सतभामा घर नंदण भयउ॥६१३॥ । उक्षणवंतु साल गुणनंत, प्राति सरूप सो सीलम्बंत । नाम कुवर सुभानु तहा च य उ. सतिभामा घर वंदरण भयउ ॥६१४॥ | दोनु कुवर खरे सुपियार, एकहि दिवस लिय उ अवतार । दोउ विरधि गए ससिमाइ, दोई पढे गुणौ इक ठाइ ॥६१५॥
शंबुमार और सुभानुकुमार का साथ साथ क्रीडा करना एक दिवस तिनि जूवा ठयो, कोडि सुवंद बाउ तिन ठयउ । संब कुवर जीणिउ तहि ठाइ, हारि सुभानुकुवरु घरि जाइ॥६१६॥
रात क्रीडा का प्रारम्भ तव सतिभामा परिहसु करइ, मन मा मंत्र चित्ति सो करई । करहू खेल कुकडहि वहोडी, जो हारे सा देइ दुइ कोडि १६१७॥
(६१२) १. जवती ए प्रत्तु अवतरपो (१) २. किसु मिले (ग) ३. सूरून | तिसु वद्धि तुलइ (ग)
(६१३) १. इस पटनि संदेह सी थेर, एतुता कर्म संयोगइ देव (ग) । (६१४) १. बत्तिस (ग) २. तसु भया (ग) ३. डुइन चंदु जिउ बिरधो गया (ग)। (६१५) १. हथियार (ग) (६१६) १. हाक्यो सयनु बाउ तिन्हि कियो (ग)
(६१७) १. गहि (स) महि (ग) २. मूलप्रति में त्रि पाठ है । ३. विसाधरा। (ग) ४. कूकान्हवकोरि (ग) ५. थाइडि बाउ परचा तिमि फेरि ।