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सयना सबल उठी धर जाम, छपनकोडि घर चाले ताम । द्वारिका नयरी करइस सोभ, पुणि सव चलिउ प्रछोहे...।।५६४।। प्रद्य ुम्न का नगर प्रवेश गरुड छन्द
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केंद्रपु पठयउ नयर मारि, मयण किरण रवि लोपियउ । aft प्रवास वररंगिरि नारि तिन कउ मनु प्रविलेखिय ।। धन रूपिणि मन धरिउ रहाइ नारायण घर अवतरिउ | सुर नर प्रवर जय जय कार जिहि आए कलयर भयउ । घर घर तोरण उभे वार, छपन कोडि उछव भयउ || ५६५॥३
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( ५६४) १. खोड (ग) प्रति में पाठ
रहसु सबु करइ लुगाईं, सुहला जीसवु श्राज । कह्य इव रुकमणि माइ, परिगट्ट सबु घाइ बद्दट्ठा । आनंधा हरिराज, मनु जब नयरले दोठ्ठा ॥५६६॥ भोरि तूरि वह वजहि कोलाहल वहुत्त । रूपिणि सरिमु मिलावडा, प्राइ मिल्पाति सुत्त् । प्रामुकट सिरि मोतोमाला, घरि घरि मंगलवार । जिनसि अडवं छत्त, जान वरसहि घण्ड गज्जहि । ऊठ्यो जय जय कार भेरि द्वरा वह वक्महि ||५७० || घरि घरि तोरण खडे, घरि घरि वेद उचार । घरि घरि गुडी उछली, घरि घरि श्रानंव अपार । घरि२ नपरि परि परिहि बधाया, करहि मारतउ थालि । भाडु वंझण सहि प्राया, हसि हसि पूछ मात । बहुत परमल तिनि मूलं, सिंघासणु तारणीया । अरू भरि तोरण उभे.... दरे मोती माणिक भरि धातु, व तिसु तिलकु कराया । सुर तेतीस रहसु बहू, सिंहासरण बसमा ११५७२ ।।
॥२५७१।।
चौपाई संन्यसने ऊठो पर आम, छपन फोडि चले धरि साम ।
चंद्रपु पट्टा नयर मकारि, बाजे समव अपार ।। ५७३।
(४६५) १. नारि नहि (ख) मूलप्रति में यदि पाठ नहीं हैं २. प्रभिलेविज (ब)
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