SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११२) भेरि तूर वहु वाजहि, कलयरु भयो अनंदु । रूपिणि सरिस मिलावऊ, अवहि मिलिउ सहि पूतु ।। अवर मिलिउ तहि पूतु, सयलपरियण कुलमंडणु । अतुर मल्ल वर वीर, सुयण णयरणारणंदणु ।। चले नयर सामहे. सयल जनु जलहर गाजे । कलयलु भयउ वहुतु, ततुर भेरि ताहि वाजे ॥५६१।। मोती चउक पुराइयउ, ठय उ सिंघासण आणि ! मयरद्धउ वयसारियउ पुनवंत घर जारिण ॥ पुनवंत घर जाणि, तहार कंद्रप वइसारिउ । मोती मारिणः भरिउ थाल प्रारति उतारिउ । पाट तिलकु सिर कियउ, सयल परियरण जण भायउ । ठयो सिंघासरण प्राणित, मोती चउक पुरायउ [१५६२॥ घर घर तोरण उभे मोती वंदनमाल । घर घर गुडी उछली घर घर मंगलचार ।। घर घर मंगलचार नयर जन सयल वधावउ । पुन कलस लइ चली नारि नइ कंद्रप घर आयउ॥ कामिरगी गीत करंति, अगर चंदन वहु सोभे । मोती बंदनमाल, घर घर तोरण उभे ॥५६३॥ (५६१) प्रवरू (ख) २. जण (ख) (५६२) १. घर तोरण उभे नारि (५६३) १. प्रलोडि (स) मूलप्रति में-'मी' पाठ है । (क)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy