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भेरि तूर वहु वाजहि, कलयरु भयो अनंदु । रूपिणि सरिस मिलावऊ, अवहि मिलिउ सहि पूतु ।। अवर मिलिउ तहि पूतु, सयलपरियण कुलमंडणु ।
अतुर मल्ल वर वीर, सुयण णयरणारणंदणु ।। चले नयर सामहे. सयल जनु जलहर गाजे । कलयलु भयउ वहुतु, ततुर भेरि ताहि वाजे ॥५६१।।
मोती चउक पुराइयउ, ठय उ सिंघासण आणि ! मयरद्धउ वयसारियउ पुनवंत घर जारिण ॥ पुनवंत घर जाणि, तहार कंद्रप वइसारिउ ।
मोती मारिणः भरिउ थाल प्रारति उतारिउ । पाट तिलकु सिर कियउ, सयल परियरण जण भायउ । ठयो सिंघासरण प्राणित, मोती चउक पुरायउ [१५६२॥
घर घर तोरण उभे मोती वंदनमाल । घर घर गुडी उछली घर घर मंगलचार ।। घर घर मंगलचार नयर जन सयल वधावउ ।
पुन कलस लइ चली नारि नइ कंद्रप घर आयउ॥ कामिरगी गीत करंति, अगर चंदन वहु सोभे । मोती बंदनमाल, घर घर तोरण उभे ॥५६३॥
(५६१) प्रवरू (ख) २. जण (ख) (५६२) १. घर तोरण उभे नारि (५६३) १. प्रलोडि (स) मूलप्रति में-'मी' पाठ है । (क)