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एतहि मयण पास मुनि जाइ, तिहिस्यो वात कहइ समुभाइ । यह तोआहि पिता तुम तणउ,जिहि पवरिषदीठउ तइ घणउ ॥३५०॥
प्रद्युम्न का श्री कृष्ण के पांच पड़ना सउ परदवणु चलिउ तिहि ठाइ, जाइ पडिउ केसव के पाइ। तव नारायण हसिउ हीय'उ, भयरण उठाई उछंगह लयउ ।।५५१।। धनु रूपिणी जेनि उर धरीउ, धनि सुरयणि जिणि अवतरिउ । धनिमु ठाउ विराधी गवउ, जिहि धनु आजु जु मेलउ भयउ ॥५५२॥ धनुष वारण तिहि पाले रालि, बाहुडि कुवर लैयउ अबठालि | जिहि घर प्राइसो नंदनु होइ, तिहिस्यो वरस लहइ सव कोइ ॥५५३॥
नारद द्वारा नगर प्रवेश का प्रस्ताव तव नानारिषि बोलइ एम, चलहु नयरि मन भावह खेव । कुवर मयरण घर करहु पएसु, नयरो उछह करहु असेसु ॥५५४॥ नारायण मन विसमउ भयउ, परिगहु सयलु जुझि रण गयउ । जादम कुटम पड़े संग्राम, किम्ब मुहि होइ सोभ पुरि ताम॥५५५|| नानारिषि वोलइ वयण, क्षत्री तू मोहिणी सकेलइ मयण । क्षत्री सुहड उठई बरवीर, रण संग्राम मति साहस धीर ॥५५६।।
(५५७) १. नारव मयणि पास उठि आई, (ग) २. इन सो पिता तु अपि तुम्ह तणा (ग) ३. तिसु पुरिष क्या वर्णउ घणा (1)
(५५१) १. सच नाराइए उठद उछ गि, मपण साथि भया अतु रंग (ग)
(५५२) १. षन्नि (ख) २. जिनि उवरि धस्यो (ग) ३. धनु सुठाउ निहि विरविहि गपउ (ख ग)
(५५३) १. कि उचाइ (ख) मकवालि (ग) २. अहसर (स) ३. तिहि परमंस लहइ सत्र कोइ (ख) तिहि घरि सलह करइ सहु कोह (ग)
६५५६) तुह (ब) तसो (ग) २. संग्रामजि (क) संग्रामहि (ग)