SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । तउ जंपइ केसब वर वीर, निसुणी वयरण तू खत्री धीर । तइ महु सयन सयलु संघरयउ, अर भामिनी रूपिणि ले चल्यउ॥५१०।। श्रीकृष्ण द्वारा प्रद्युम्न को अभयदान देने का प्रस्ताव पुनवंतु तुहु खत्री कोइ, तुह उपरि मुह कोपु न होइ । जीवदानु में दीनउ तोहि, वाहुंड रूपिणि प्रापहि मोहि ।।५११॥ प्रद्य म्न द्वारा श्रीकृष्ण जी की वीरता का उपहास करना तब हसि जंपइ पत्री मयरगु, असी बात कहै रण कवरणु । तोहि देखत में रूपिरिण हडी, तो देखत सब सयना परी ।।५१२॥ जिहि तू रण मा जिरिणउ विगोइ, तिहि स्यो अबहि साथि वयो होइ । लाज न उठइ तुमइ हरिदेउ, वहुडि भामिनी मांगइ केम्व ।।५१३।। मै तू सूणिउ जूझ पागलउ, अब मो दीठउ पौरुष भलउ । कछु न होइ तिहारे कहे, सयन पड़ी तुम हारिउ हिए ॥५१४।। तउ मयरद्ध हसि करि काउ, तइ सव कुटम धरगि पडि सबउ । तेरउ मनुइ परंखिउ आजु, तुहि फुणि नाही रूपिणि काजु ॥५१५॥ (५१०) १. तास (ग) २. सह मयल सयेतु संघरिउ (ख) मोहि (ग) । ३, तिया (ग) (५११) १. इसु (ग) २. जाहि (ग) (५१२) १. बोल (ग) २. राठी (ग) (५१३) १. मारघा वलु सथारु विमोइ (ग) २. सारथि (ग) सांति (ख) किन कोई (ख) (५१४) १. तेता (म ख) तीसरा चरण स्व प्रति में रही है। मूलप्रति में भेलउ पाठ है। (५१५) १. विहसि फुरित (ख) तहि वहसि (ग) २, जेता हर६ मनि संसारहा (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy