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छोडि आस तड़ परिगह तशी, अरु त छोडी सो रुक्मिणी । जउ तेरे मन कछू न ग्राहि, पभराइ भयगु जीउ ले जाहि ॥ ५९६ ॥ प्रद्युम्न के उत्तर के कारण श्रीकृष्ण का
क्रोधित होना एवं धनुष बाण चलाना
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मण पछितावउ जादमुराउ, मइयासह बोल्ड तिनाउ ।
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इहि मोस्यो बोल्यो प्रगलाइ, अव मारउ जिन जाइ पलाइ ॥
उपनउ कोप भइ चित कारिण, धनुष चढाइयउ सारंगपारिंग ॥५१७ ॥
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अर्द्धचंद्र तहि वाधि बारा, अब याकत देखियउ परागु ।
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साधि धनियउ दीठउ जाम, कोपारूढ मय भो ताम ॥ ५१८ ॥ कुसुमवाण तव बोलिउ वयेगु, धनहर छोनि गयउ महमहणु |
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हरि को चाउ टिगो जाम, दूजइ धनष संचारिउ ताम ।। ५६६ ॥
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फुरिण केंद्रपु सरु दीनख छोडी, वहइ धनकु गयो गुण तोडि ।
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कोपारूढ कोप तब भयउ तीजउ चाउ हाथ करि लयउ || ५२० ।।
(५१६) तजी (ग) २. जीवडा (ग)
(५१७) १. मनि ( ख, ग ) २. मह इसिज (ग) मइ सुख (ग) ३. श्रागलड (ख) ४. इव ( ख ) जिन ( ग )
(५१८) १. तिनि संध्या वाणु (ग) २. इष इह (ख) इव देख तु तरा निदान (ग) ३. बरहरू ( ख, ग ) ४. कोपिरूप ( ग )
(५१९) मेलिउ ( ग ) २. चाउ ( ख ) मयणु ( ग ) २. छिन्नउ तब ( ग ) ४. तव हरि घाउ तूटिया ताम (ग) ५. चढाया ( ग ) नोट- दूसरा और तीसरा चरण प्रति में नहीं है ?
(५२०) १. तब (ग) २. मुहई ( ख ) ऊभी धष गया सो तोडि (ग) ३. fasy (er) faby (1) Y. HEITI (1)