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ठा ठा रहिवर हयवर पडे, तूटे छत्रजि रयणनि जरे । ठाठा मैगल पड़े अनंत, जे संग्राम आहि मयमंत ॥५०॥ सेना जूझि परी रग जाम, बिलख बदन भो केसव ताम | हाहाकारु कर महमहशु, वलियो वीरू अाहि यह कवणु ।।५०१।।
रण क्षेत्र में पड़ी हुई सेना की दशा बस्तुबंध-पड़े जादौ व देखि वर वीर | अरु जे पंडी अतुलबल, जिन्हहि हाक सुर साथ कंपइ । जिन चलंत महि थर हरइ, सवलधार नहु कोवि जित्तइ ।। ते सव क्षत्री इहि जिणे, यह अचरिउ महंतु । काल रूप यहु अवतरिउ, जादम्ब कुलह खयंतु ॥५०२।।
चौपद
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फिरि फिरि सैना देखइ राउ, खत्री परे न सूझइ ठाउ । मोती रयण माल जे जरे, दोसइ छत्र तूरी रण पड़े ।। ५०३।। हय गय रहिवर पडे अनंत, ठाई ठाइ मयगल मयमंतु । ठाठा रूहिरु वहहि असराल, ठाइ ठाइ किलकइ वेताल ||५०४॥
(५००) १. ठाई ठाइ हिबह प्रांसू परइ (ग) २. सिर (ग) ३. पादक (ग)
(५०१) १. कार (क ग) मूलपाठ कातु २. रणमाहि वीरु अपि परववरण (ग)
(५०२) १. प्रत्रुजे (ख) २, परशुन (ग) २. जिन्ह् हाक ते मुरगव डोलह (ग) ३. जिन्ह हाक इव मेदिनी धसद (ग) ४. समर (ख) चलई मेरु जिन्ह हाकु झोले (ग) ५. रण (ग) ६. इहु सूरा मयमतु (ग) ७. सब संघरह (ख)
(५०३) १. रल (ग) २, तरि (ख) तुही घर (ग) नोट---५०३ से ६१३ सक के हुन्छ 'क' प्रति में नहीं है ।
(५०४) १. मपगल (ग) ३. बहूत (ग) ३. वषिरुपये (ग) ४. किलकिलहि (ख)