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( १७०) देखि स्मरि बोलइ हरिराउ, अर्जुन भोम्मु तिहारौ ठाउ । सहियो निकुल पयंपहि तोहि, पवरिषु प्राजु दिखावहि मोहि १४६३। फुरिग पचारि बोलइ हरिराउ, दसौ दिसा निसुरगौ वसुदउ । वलि भद्र कुवर ठाउ तुमि तरणउ, दिखलावहु पवरिश प्रापरणउ ॥४६४॥ कोप्यो भीमसेरिण तुरी चढीइ, हाकि गजा ले रणमहि भिडइ। गयर सरीसो करइ प्रहार, भाजहु खत्री नही उवार ॥४६५।। कोपारूढ पंथ तव भयउ, चाउ चढाइ हाथ करि लीयउ । चउरंग वलु भिडउ पचारि, को रण पंथ न सकइ सहारि ॥४६६॥ सहद्यो हाथ लेइ करिबालु, निकुन कौंत ले करइ प्रहारु । हलहर जुझ न पूजइ कोइ, हल प्रावध लई पहरइ सोइ ।।४६७।। जादव भिरइ सुहर वर वीर, रण संग्राम ति साहस धीर । दसर दिसा होइ बसुदेव भिडे, बहुतइ सहर जूझि रण पडे ।।४६८।।
प्रद्युम्न द्वारा विद्या बल से सेना को धाशायी करना तव मयरद्ध कोप मन धरइ, माया मइ जूधु बहु करइ । मोहे सुहड़ सयल रण पडे, देखइ सुहड विमाणा चढे ॥४६६!! - (४६३) १. सेनु (ग)
-- -- ----- - - (४६५) १. भीव तहि तुल बढ़पा (ग) २. हाथि (क) मूलप्रति में 'लए सो भीडह' पाठ है ३. जूझ भीम दे बहुती मार (ग)
१४६६) १. कोपिरुत पस्थ (ग) २. पत्थु (ख) ३. पछह (ख) पत्य (ग) ४. सहद ररिंग मार (ग)
(४६७) १. का (ग) मूलप्रति में 'अल' पाठ है ।
(४६८) १. संग्रामहि (ग) २. प्राहि रणधीर (क) ३, जे रण संगमि माहि रणधीर (ख) ४. मायामयी मुझ रण पड़े (अ)
(YES) १. महमसो तव जूझ कराह (ग) २. मोहरिण विद्या दीई समदायि (ग) ३. श्रमर (क )