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________________ ( d ) विद्या बल से प्रद्युम्न द्वारा उतनी ही सेना तैयार करना । तवइ मयण मन मा वृधिकरी, सुमिरी विद्या समरी करी। जइसउतह वलु पर देखीयउ, इसउ सयन प्रापगाउ कीयउ ॥४८८।। युद्ध वर्णन दाउ दल सयउ मह भए, सुहडनु साजि धनुष कर लए । इनउ साजि लए करवाल, जाणिक जीभ पसारी काल १४८६।। मयगल सिउ मैगल रण भिरइ, हैवर स्यो हैवर प्रा भिरइ । रावत पाइक भिरे पचारि. पडइ उठई जिमवन की सारि ।।४६०॥ केउ हाकई केउ लरइ, केउ मार मार प्रभगइ । केउ भोरहि स्मरि रण प्राजि, केउ कायर निकलइ भाजि ॥४६१॥ केउ वीर भिडइ द्रुबाह, केउ हाक देइ रण माह । केज करइ धनष टंकारू, केउ असिवर करई संघारु ।।४६२।। (80॥ ..---.---.-. . (४८८) १, बाहति (ग) २. धरी (ख) ३. सेना करो (क) सपन कारणी (ख) विरधी करी (ग) ४. तसउ (क) तव सउ (ख) जे ता तिनि परदल देखिया, ते ता सेनु प्रापणा कीया (ग) (४९) १. साम्हे उभे (क) सतमुख जब (ख) वीर बराबर भये (ग) २. धरणहर (फ) ३. किनही (क) किनर (ख) केइ (ग) ४. जीभ (क ख ग) (४०) १. प्रा भिडहि (क) २. पाखुढा (क) किरजई (ग) ३. सहहि प्रतिमार (ग) (६१) ग--केइ हाथि कहिके पहणह, केंद'मारते कहि इम भरणहि । केइ भिडहि संवरि ररिण गाजि, फेइ फायर नासहि भाज। १. सूलपाठ रणाजि (४६२) १. धूक का हाउ (ग) २. पहार (क ख) के प्रसवार घालहि घाउ (ग)
SR No.090362
Book TitlePradyumna Charit
Original Sutra AuthorSadharu Kavi
AuthorChainsukhdas Nyayatirth
PublisherKesharlal Bakshi Jaipur
Publication Year
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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